अब्दुल वसीम अंसारी/ रीवा( मध्य प्रदेश)
पैंतालीस वर्षीय मुस्लिम अंसारी का सपना पूरा होने वाला है. कुछ साल पहले जब आॅटो लेकर अधिकारियों की काॅलोनी से गुजरते थे, हर बार अधिकारियों की शानदार कोठियों को देखकर उनके मन में विचार आया करता था कि ऐसी कोठी में अपना कोई कब रहेगा. ऐसे सपने रखने वाले मुस्लिम अंसारी का संघर्ष अब साकार होने जा रहा है. उनकी बेटी डिप्टी कलेक्टर बनने जा रही हैं.
हाल ही में घोषित मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा के फाइनल परिणामों में रीवा जिले की आयशा अंसारी ने प्रदेश भर में 12वीं रैंक हासिल की है.उनका चयन डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए हुआ है.आयशा की यह सफलता न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का विषय है, बल्कि पूरे रीवा जिले के लिए भी एक प्रेरणा बन गई है.हालांकि, उन्हें अभी पोस्टिंग नहीं मिली है, लेकिन उनकी इस उपलब्धि ने उनके माता-पिता के साथ-साथ उनके पूरे जिले का नाम रोशन किया है.
आयशा को अधाई देने वालों का लगा है तांता
आयशा अंसारी का जन्म एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था.उनके पिता, मुस्लिम अंसारी, पेशे से ऑटो चालक हैं.उन्होंने अपनी बेटी के सपने को साकार करने के लिए अपनी पूरी मेहनत झोंक दी.उनके पिता की मेहनत और संघर्ष का परिणाम यह हुआ कि उनकी बेटी ने मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 12वीं रैंक हासिल की और अब वह डिप्टी कलेक्टर बन गई हैं.
आयशा अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं.उनका कहना है कि उनके पिता रोज सुबह टहलने के दौरान पुलिस लाइन कॉलोनी से होकर जाते थे, जहां कई सरकारी अधिकारियों के आलीशान बंगले थे.उन बंगलों की नेम प्लेट पर अधिकारियों के नाम लिखे होते थे, जो उनके पिता के लिए एक प्रेरणा बन गए थे.
आयशा कहती हैं कि उनके पिता अक्सर कहते थे, "काश, हमारे घर में भी कोई ऐसा हो, जिसके नाम का एक बड़ा बंगला हो." इसी विचार से प्रेरित होकर आयशा ने अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और यह ठान लिया कि वह अपने पिता के इस सपने को पूरा करेंगी.
आयशा अंसारी ने अपनी कड़ी मेहनत और निरंतर प्रयासों से यह सफलता हासिल की.उनका मानना है कि यदि कोई व्यक्ति पूरी लगन और मेहनत से काम करता है, तो सफलता जरूर मिलती है.आयशा ने कभी भी कोचिंग का सहारा नहीं लिया.
उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान सेल्फ स्टडी रूम तैयार किया था और मोबाइल का इस्तेमाल केवल अध्ययन सामग्री प्राप्त करने के लिए किया.उनका यह समर्पण और कठिनाई से जूझते हुए मेहनत करने का तरीका ही उन्हें इस मुकाम तक ले आया.
आयशा की कहानी इस बात का उदाहरण है कि अगर परिवार का समर्थन और आत्मविश्वास हो, तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है.आयशा के पिता, मुस्लिम अंसारी, ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटी के सपने को पूरा करने में लगा दी.
वह कहते हैं, "हमारे पास सिविल सेवा परीक्षा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन हमारा सपना था कि हमारी बेटी किसी अच्छे पद पर पहुंचे.
हमने अपनी बीमारी के बावजूद दिन-रात काम किया और बेटी को हर जरूरत पूरी करने के लिए मदद की." अब जब उनकी बेटी ने सफलता प्राप्त की है, तो उन्हें बहुत खुशी हो रही है.
आयशा अंसारी के माता-पिताकी आर्थिक दशा कुछ अच्छी नहीं थी, फिर भी उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए उसे हर संभव सहायता दी.
आयशा के पिता बताते हैं कि जब वह बीमार थे, तब भी उन्होंने ऑटो चलाया ताकि उनकी बेटी की पढ़ाई में कोई कमी न आए.आयशा के निरंतर प्रयासों का ही यह परिणाम है कि उन्हें सफलता मिली और अब वह डिप्टी कलेक्टर बन गई हैं.
आयशा अंसारी की सफलता ने उनके परिवार और मोहल्ले में खुशी का माहौल बना दिया है.उनके घर में बधाई देने वालों की भीड़ लगी हुई है.
आयशा का मानना है कि युवाओं को चाहिए कि वे अपनी मेहनत में कोई कमी न छोड़ें और निरंतर प्रयास करते रहें.सोशल मीडिया और भटकाव से दूर रहकर केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि एक दिन सफलता जरूर मिलती है.
आयशा के पिता का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी इस मुकाम तक पहुंचेगी, लेकिन अब जब यह सपना सच हो गया है, तो उन्हें गर्व महसूस हो रहा है.उनका कहना है, "हमारा जीवन बहुत संघर्षपूर्ण था, लेकिन अब हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारी बेटी ने अपनी मेहनत से यह उपलब्धि हासिल की है."
आयशा को मुबारकबाद देने के लिए रिश्तेदार उमड़े
आयशा अंसारी का सफर इस बात का प्रतीक है कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर आत्मविश्वास और मेहनत से काम किया जाए, तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है.उनके द्वारा हासिल की गई सफलता न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे जिले के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है.