दयाराम वशिष्ठ
कश्मीर के श्रीनगर से ताल्लुक रखने वाली ताहिरा और उनके बेटे मंजूर अहमद भट्ट की कहानी न केवल संघर्ष और कठिनाइयों का सामना करने की मिसाल है, बल्कि यह नारी शक्ति और परिवार के सामूहिक प्रयासों से जीवन को संवारने का प्रेरणास्त्रोत भी है. ताहिरा, जो पहले घर का कामकाज करती थीं, ने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने परिवार को संजीवनी दी, बल्कि अपने बेटे को भी अपनी कला का प्रशिक्षण देकर उसे जीवन की राह दिखाई.
गरीबी से संघर्ष तक का सफर
कश्मीर के श्रीनगर के लज्जन गांव में जन्मे मंजूर अहमद भट्ट, आज एक सफल अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्पकार हैं. वे अपनी गरीबी भरी जिंदगी को कभी नहीं भूलते। मंजूर ने "आवाज दॉ वाइस" संवाददाता से बातचीत में बताया कि, "हमारे पास कभी भी अच्छी आमदनी का कोई जरिया नहीं था. बचपन में स्कूल जाने के लिए यूनिफार्म तक नहीं होती थी। मेरे पिता अकेले ही परिवार का खर्चा उठाते थे, और हम सब उन्हें सहारा देने के लिए काम सीखने में लग गए."
मंजूर के पिता, मोहम्मद अब्दुल भट्ट ने कालीन बनाने का काम शुरू किया था, और उनकी मां ताहिरा ने स्वेटर बुनने के बाद बैडशीट बनाने का काम सीखा. हालांकि, उनकी स्थिति बेहद कठिन थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मंजूर के भाई फैसल अहमद भट्ट, समीर अहमद भट्ट और मोहम्मद आमिर भी अपनी मां-पिता के साथ काम में हाथ बंटाने लगे.
इस परिवार ने मिलकर अपना कारोबार बढ़ाया, और आज यह परिवार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है.
आयटमों का विस्तार और बाजार की मांग के अनुसार बदलाव
मंजूर अहमद भट्ट ने अपनी कला को और विस्तार दिया। शुरुआत में बैडशीट बनाने के बाद, उन्होंने कालीन बनाना शुरू किया. 2007 में, उन्होंने नए डिजाइनों में बैडशीट बनाने का कार्य शुरू किया. धीरे-धीरे उनके उत्पादों की मांग बढ़ी, और उनके व्यवसाय में लगातार वृद्धि होने लगी.
इसके बाद, उन्होंने वुलन के काम और शूट बनाने का काम शुरू किया. अब, उनकी कार्यशाला में 30 से 36 तरह के हस्तशिल्प उत्पाद तैयार होते हैं, और उनकी कड़ी मेहनत से उनकी कंपनी का कारोबार लगातार बढ़ रहा है.
जयपुर और दिल्ली में मिले सफलता के अवसर
मंजूर अहमद भट्ट को दिल्ली, मुंबई, जयपुर और सूरजकुंड जैसे स्थानों पर भेजा गया, जहां उन्होंने अपने हस्तशिल्प उत्पादों को प्रदर्शित किया और बड़े पैमाने पर सफलता हासिल की। इन मेलों से उन्हें विदेशी ऑर्डर भी मिलने लगे, और उनका कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने लगा.
जयपुर में स्कूटी पुरस्कार और बढ़ती सफलता
उनकी कड़ी मेहनत का एक और सकारात्मक परिणाम जयपुर में मिला, जहां उन्हें उनकी उत्कृष्टता के लिए स्कूटी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार के बाद, उनके परिवार में खुशी का माहौल था और उनके कदम कभी नहीं रुके। आज, उनका कारोबार एक अच्छे टर्नओवर तक पहुंच चुका है.
मुंबई के सरस मेला में नेशनल अवार्ड की प्राप्ति
मंजूर अहमद भट्ट को मुंबई में लगे सरस मेला में भी भाग लेने का अवसर मिला. हालांकि, उन्हें रेल की रिजर्वेशन नहीं मिली, फिर भी उन्होंने ठान लिया था कि वह इस मेला में अपनी कला को जरूर प्रदर्शित करेंगे.
पिता के साथ जनरल डिब्बे से यात्रा करने के बाद, वे मुंबई पहुंचे और अपनी डिजाइनों को ग्राहकों के सामने पेश किया. उनकी कला को वहां अत्यधिक सराहा गया, और उन्हें इस मेले में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया.
कार्यशाला और युवाओं को प्रशिक्षण देने की पहल
आज, श्रीनगर से 6 किलोमीटर दूर उनकी वर्कशॉप में 150 कारीगर काम करते हैं. मंजूर अहमद भट्ट का मानना है कि इस कला को आगे बढ़ाने का एकमात्र तरीका है कि युवाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जाए. इसी उद्देश्य से, उन्होंने अपनी वर्कशॉप में युवाओं को प्रशिक्षित करना शुरू किया है, ताकि यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहे.
इसके अलावा, उन्होंने सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से महिलाओं को रोजगार देने की पहल की है, जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हो रही है.
सरकार से अनुरोध: मेला में भाग लेने का अवसर मिले
मंजूर अहमद भट्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होने वाले मेलों में भेजा जाए ताकि उनके हस्तशिल्प उत्पादों को और अधिक पहचान मिल सके और उनका कारोबार बढ़ सके.
भविष्य में एक्सपोर्ट का लक्ष्य
मंजूर का अगला लक्ष्य अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना और उन्हें अपने हस्तशिल्प कारोबार में प्रशिक्षित करना है. उन्होंने कहा, "मैं खुद ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सका, लेकिन मुझे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी है ताकि वे इस कारोबार को और ऊंचाईयों तक पहुंचा सकें." उनका सपना है कि उनके हस्तशिल्प उत्पाद देश-विदेश में लोकप्रिय हों और उनके प्रमुख शहरों में शोरूम खुलें.
परिवार के सामूहिक प्रयासों का प्रमाण
मंजूर अहमद भट्ट और उनकी मां ताहिरा की कहानी न केवल संघर्ष की है, बल्कि यह कड़ी मेहनत, समर्पण और परिवार के सामूहिक प्रयासों का प्रमाण है. इस परिवार ने न केवल कश्मीर की हस्तशिल्प कला को दुनिया के सामने लाया, बल्कि उन्होंने यह साबित किया कि अगर इंसान ठान ले तो कोई भी मुश्किल नहीं बड़ी होती.