जयपुर के गौरव सैयद शाकिर अली: मिनिएचर पेंटिंग के मास्टर कलाकार

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 11-02-2025
Syed Shakir Ali, the pride of Jaipur: Master artist of miniature painting
Syed Shakir Ali, the pride of Jaipur: Master artist of miniature painting

 

फरहान इसराइली/ जयपुर

गुलाबी नगरी जयपुर, जो अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध कला संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, में एक ऐसी कला भी है, जो इस शहर की विरासत का अहम हिस्सा बनी हुई है — पारंपरिक राजस्थान मिनिएचर पेंटिंग.इस कला के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिसे सुनते ही कारीगरी और बारीकियों का ख्याल आता है:सैयद शाकिर अली, जिनके योगदान से जयपुर मिनिएचर पेंटिंग की दुनिया में एक खास पहचान बना चुका है.

सैयद शाकिर अली का जन्म 1956 में उत्तर प्रदेश के जलेसर गाँव में हुआ था, लेकिन उनका परिवार बाद में जयपुर में बस गया.कला से गहरा लगाव होने के बावजूद, उनका परिवार उन्हें डॉक्टर बनाने के इच्छुक था.

हालांकि, शाकिर अली का मन हमेशा चित्रकला में ही रमा रहा.जयपुर के प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी रुचि ड्राइंग और चित्रकला की ओर बढ़ी, जिससे उन्हें कला की दिशा में अपना करियर तय करने का रास्ता मिला.

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शाकिर अली ने 15 साल की उम्र से चित्रकारी शुरू कर दी थी.अपने शुरुआती दिनों में, उन्होंने कोयले के टुकड़े से दीवारों पर चित्र बनाने का सिलसिला शुरू किया था.यह कला यात्रा आज भी जारी है.शाकिर अली के दादा, सैयद हामिद अली, दरबारी कलाकार थे और लखनऊ के अवध स्कूल के प्रतिष्ठित चित्रकार थे, जबकि उनके पिता सैयद साबिर अली एक कला संग्राहक थे, जिन्होंने शाकिर अली को कला की बारीकियों के बारे में प्रेरित किया.

कला में गहरी निपुणता और सम्मान

शाकिर अली की चित्रकारी की बारीकी और उत्कृष्टता इस हद तक है कि उनकी कला को देखना एक विशेष अनुभव है.उनकी पेंटिंग्स को निहारने के लिए अक्सर मैग्निफाइंग ग्लास की जरूरत पड़ती है, क्योंकि वे सिंगल हेयर ब्रश से बेहद महीन और सटीक रेखाएं खींचते हैं.

उनका तकनीक इतना उन्नत है कि उनकी पेंटिंग्स में हर एक विवरण को बहुत बारीकी से दर्शाया जाता है.उनका इस्तेमाल गिलहरी या नेवले की पूंछ के बालों से बने बहुत बारीक ब्रश से होता है, जिससे उनकी चित्रकला और भी शानदार बनती है.

उन्होंने मुग़ल और राजस्थानी मिनिएचर आर्ट की शैलियों में खुद को एक विशिष्ट स्थान बनाया है.उनकी कला में ऐतिहासिक दृश्यों, शाही दरबारों, धार्मिक कथाओं और प्राकृतिक दृश्यों को बेहद सटीकता से उकेरा जाता है.इस उत्कृष्टता को विदेश मंत्रालय ने भी सराहा और उनकी कई पेंटिंग्स को राजनयिक उपहार के रूप में चुना.

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शाकिर अली की कला यात्रा में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं.1992 में, उन्होंने इस्लामाबाद में आयोजित 10वें सार्क लोक महोत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व किया और वहां पहला पुरस्कार प्राप्त किया.इसके बाद, 2013 में भारत सरकार ने उन्हें कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया.

इससे पहले, 1993 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार (नेशनल अवॉर्ड) भी मिल चुका था.2021 में उन्हें जयपुर एजुकेशन समिट के 'क्रेडेंट रत्न पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया.

मिनिएचर आर्ट को नया रूप देना

सैयद शाकिर अली ने सिर्फ पारंपरिक मिनिएचर आर्ट को जीवित नहीं रखा, बल्कि उसमें नया आयाम भी जोड़ा है.वे पारंपरिक और आधुनिक तत्वों का अद्भुत मिश्रण करते हैं, जिससे उनकी पेंटिंग्स और भी आकर्षक और प्रभावशाली बन जाती हैं.उन्होंने मिनिएचर आर्ट के साथ समकालीन कला में भी कार्य किया और उसे एक नई दिशा दी.

उनकी कलाकृतियों का संग्रह जयपुर के सिटी पैलेस और मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम जैसी प्रतिष्ठित जगहों पर मौजूद है, और उन्होंने इन संस्थाओं में कई पुरानी पेंटिंग्स का रिस्टोरेशन भी किया है, जिससे ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखा जा सके.

नई पीढ़ी को कला का ज्ञान देना

शाकिर अली ने अब तक 2500 से ज्यादा विद्यार्थियों को मिनिएचर आर्ट की शिक्षा दी है.वे लगातार विभिन्न देशों में वर्कशॉप और प्रदर्शनी का आयोजन करते हैं ताकि इस अद्भुत कला को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके.

उन्होंने 1981 में नई दिल्ली के क्राफ्ट म्यूजियम में पहली बार लाइव प्रदर्शनी आयोजित की थी.इसके बाद वे अमेरिका, ब्रिटेन, ईरान सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं.उनके लाइव प्रदर्शन न केवल दर्शकों को इस कला के विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर देते हैं, बल्कि यह कला के प्रति उनके प्रेम को और बढ़ाते हैं.

उनके अनुसार, डिजिटल तकनीक कभी भी मिनिएचर पेंटिंग की बारीकियों को दोहरा नहीं सकती.यह कला अपने शुद्ध रूप में केवल मानव कौशल और हाथों की निपुणता से संभव है.

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भारत में मिनिएचर आर्ट का इतिहास

मिनिएचर पेंटिंग का इतिहास भारत में फारस से आया था, और बाद में इसे मुग़ल, ब्रिटिश और पारसी शैलियों में विकसित किया गया.राजस्थान में, मेवाड़, जोधपुर, कोटा-बूँदी, किशनगढ़ और बीकानेर की अनूठी शैलियाँ उभरीं, जिन्होंने भारतीय मिनिएचर पेंटिंग को एक अद्वितीय पहचान दी.

सैयद शाकिर अली की कड़ी मेहनत, समर्पण और कला के प्रति प्रेम ने न केवल जयपुर बल्कि पूरे भारत में मिनिएचर पेंटिंग की कला को एक नया रूप और सम्मान प्रदान किया है.

वे न सिर्फ एक कला गुरु हैं, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी हैं जो आने वाली पीढ़ी को अपनी कला के माध्यम से धरोहर संजोने का संदेश दे रहे हैं.