दयाराम वशिष्ठ/ सूरजकुंड (फरीदाबाद)
दरी बेचकर उन्होंने परिवार का पालन-पोषण किया, लेकिन लगभग 12 वर्ष पहले उनका निधन हो गया. इस दुखद घटना के बाद परिवार टूट गया था, लेकिन उनकी पत्नी रजिया बेगम ने हार नहीं मानी और अपने बेटों को अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद बेटों ने एकजुट होकर अपने पिता के काम को न केवल बढ़ाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान भी बनाई.
अहमद कॉरपेट शो रूम का उद्घाटन और भविष्य की योजनाएं
हस्तशिल्पकार हब्बान अहमद के छह बेटों ने भदोई के बाद चंडीगढ़ में अपने पिता के नाम पर "अहमद कॉरपेट" शो रूम खोला है. अब उनका उद्देश्य भारत के हर बड़े शहर में अपने पिता के नाम से शो रूम खोलना है. यह कदम न केवल उनके पिता की मेहनत को सम्मानित करने का है, बल्कि उनकी मेहनत और समर्पण से कालीन उद्योग को भी नया मुकाम दिलाने का है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी मांग: विदेशों में भी बिकेगी कॉरपेट
आमिर अहमद, हब्बान अहमद के बेटे, कहते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका बनाए हुआ कॉरपेट विदेशों तक पहुंचेगा. चंडीगढ़ स्थित उनके शो रूम से अब एक्सपोर्टर आते हैं और उनका माल अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, चीन जैसे देशों में पहुंचता है.
विदेशों में बढ़ी हुई मांग को देखते हुए अब वे कालीन के डिजाइनों को कस्टमाइज करने का काम भी कर रहे हैं. इसके लिए उनके भाई फिरोज अहमद ने कई नए डिजाइन तैयार किए हैं, जो विदेशों में काफी लोकप्रिय हो गए हैं.
भदोई की कालीन का ग्लोबल नाम
भदोई की कालीन दुनिया भर में प्रसिद्ध है. मुगलों के समय से ही यहां कालीन बनाने का परंपरा चली आ रही है. आज भी यहां के कालीनों का वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ा बाजार है. सूरजकुंड मेले सहित विभिन्न मेलों में इन कालीनों की काफी मांग होती है.
आमिर अहमद का कहना है कि इस काम में उन्होंने और उनके भाइयों ने अपने पिता से जो शिक्षा और संस्कार पाए, वही उनकी सफलता की कुंजी बनी है. बचपन में उनके पिता उन्हें कालीन बुनाई के छोटे-छोटे काम सिखाते थे, जिससे उनका यह परिवार इतना बड़ा नाम बना.
मां बनीं अकाउंटेंट, रखती हैं हिसाब-किताब
परिवार के बड़े होने के बावजूद सभी भाई एकजुट होकर काम करते हैं. वे जो भी पैसा कमाते हैं, उसे उनकी मां रजिया बेगम के खाते में जमा करते हैं. फिर, किसी भाई को जो भी रकम चाहिए, वह हिसाब बताकर मां से लेता है. रजिया बेगम ने अपने पति के बाद परिवार के सभी कामों को संभाला और उनका मार्गदर्शन किया.
वर्तमान में 70-75 कारीगरों के साथ काम कर रही वर्कशॉप
पहले जहां उनके पास कुछ ही कारीगर काम करते थे, वहीं अब उनकी वर्कशॉप में 70-75 कारीगर काम करते हैं. यहां 30-35 मशीनें भी लगी हैं, जो कालीन बनाने के काम को तेज और बेहतर बनाती हैं. एक समय था जब दरी बनाने के लिए लकड़ी की भट्टी और बड़े टबों में रंगाई का काम होता था, लेकिन अब तकनीक में काफी बदलाव आ चुका है.
एनसीआर के बाजारों में अच्छा व्यवसाय और मेलों में सफलता
एनसीआर (नेशनल कैपिटल रीजन) के बाजार उनके लिए काफी लाभकारी हैं. यहां उनका सामान तेजी से बिकता है.सूरजकुंड मेले में उनके पास 600 रुपये से लेकर ढाई लाख रुपये तक के कालीन होते हैं. यहां उन्हें ऑर्डर भी खूब मिलते हैं, जो उनके व्यापार को और भी बढ़ावा देते हैं. वे प्रत्येक मेले में अपने नए डिजाइनों और उच्च गुणवत्ता के कालीन लेकर पहुंचते हैं.
अवार्ड के लिए प्रयासरत: उच्च गुणवत्ता और डिजाइन पर ध्यान
आमिर अहमद कहते हैं कि अब वे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उच्च गुणवत्ता और बेहतरीन डिजाइनों के कालीन तैयार कर रहे हैं. उनका उद्देश्य न केवल अपने पिता के नाम को और भी ऊंचा करना है, बल्कि जल्द ही कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय अवार्ड भी प्राप्त करना है. वे विश्वास करते हैं कि उनका काम और उनका समर्पण उन्हें जल्द ही इस अवार्ड के करीब ले जाएगा.
परिवार की मेहनत ने बदली तक़दीर
आज भदोई के गांव गुशियां में जन्मे हब्बान अहमद का सपना उनके बेटों ने पूरा किया है. दरी बेचने से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक कालीन की पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन रजिया बेगम और उनके बेटों ने दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और एकता से यह सपना सच कर दिखाया. अब उनका लक्ष्य यह है कि उनकी कालीन हर बड़े शहर और विदेशों में बिके और उनके पिता का नाम हमेशा जीवित रहे.