कश्मीर के पुलवामा जिले के नैना गांव के एक युवा और प्रेरणादायक बीटेक कंप्यूटर साइंस स्नातक सकलैन यूसुफ ने कश्मीरी भाषा के संरक्षण के लिए एक अभिनव कदम उठाया है. यूसुफ, जिन्होंने 2023 में अपनी डिग्री पूरी की, ने "कश्मीरी जीपीटी" (KashmiriGPT) नामक एक एआई-आधारित कश्मीरी भाषा सहायक विकसित किया है, जो कश्मीरी भाषा के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है.
यह टूल कश्मीरी, जो एक लुप्तप्राय भाषा है, और आधुनिक एआई के बीच के अंतर को पाटता है. इस तकनीकी उपकरण के माध्यम से कश्मीरी भाषी उपयोगकर्ता अपनी मूल भाषा में एआई से संवाद कर सकते हैं, जो न केवल भाषा की खाई को पाटता है बल्कि कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करता है.
कश्मीरी जीपीटी का जन्म: एक प्रेरणादायक यात्रा
यूसुफ का एआई और भाषा संरक्षण के क्षेत्र में कदम कश्मीरी भाषा के भविष्य को लेकर उनकी गहरी चिंता से प्रेरित था. उन्होंने देखा कि जबकि हिंदी, तमिल, और बंगाली जैसी प्रमुख भारतीय भाषाएँ चैटजीपीटी जैसे एआई प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं, कश्मीरी भाषा का कहीं कोई स्थान नहीं था.यूसुफ ने इस बात पर अफसोस जताते हुए कहा, "कश्मीरी को छोड़कर, देश की सभी प्रमुख भाषाएँ ChatGPT पर उपलब्ध हैं. इस अहसास ने मुझे कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया."
इस प्रेरणा के बाद यूसुफ ने कश्मीरी जीपीटी पर काम करना शुरू किया और इसे विकसित करने में कई महीने समर्पित किए. उनका उद्देश्य था एक ऐसा उपकरण तैयार करना जो न केवल कश्मीरी भाषा में संवाद की सुविधा प्रदान करे, बल्कि कश्मीर की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी बचा सके.
कश्मीरी जीपीटी की विशेषताएँ
कश्मीरी जीपीटी का निर्माण एक चुनौतीपूर्ण कार्य था. यूसुफ ने इसे कोड करने, परीक्षण करने और सुधारने में पांच महीने से अधिक समय लगाया. परिणामस्वरूप, कश्मीरी जीपीटी एक अत्याधुनिक एआई मॉडल है जो सिर्फ अनुवाद से परे है. यूसुफ ने कहा, "कश्मीरी जीपीटी केवल एक अनुवाद उपकरण नहीं है. यह कश्मीर के प्राचीन इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है, साथ ही उपयोगकर्ताओं को कश्मीरी भाषा सीखने में मदद करता है."
कश्मीरी जीपीटी की सबसे खास बात यह है कि यह सांस्कृतिक शिक्षा को तकनीकी ज्ञान से जोड़ता है. उपयोगकर्ता इस प्लेटफार्म के माध्यम से कश्मीर के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को जान सकते हैं, जो 5,000 से अधिक वर्षों पुरानी है. यह एक ऐसा मंच है, जो कश्मीरी भाषा के संरक्षण के साथ-साथ उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को भी उजागर करता है.
कश्मीरी जीपीटी का उद्देश्य
कश्मीरी जीपीटी का मुख्य उद्देश्य कश्मीरी संस्कृति और भाषा को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना है. यूसुफ ने बताया कि कश्मीरी बोलने वालों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है, और यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है. उन्होंने कहा, "हम कश्मीरी के मूल वक्ताओं की संख्या में गिरावट देख रहे हैं.
यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि कम बोलने वालों के साथ, भाषा को भुला दिए जाने का खतरा है." उनका मानना है कि कश्मीरी जीपीटी युवा कश्मीरी पीढ़ी में भाषा के प्रति रुचि पैदा करेगा और उन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने के लिए प्रेरित करेगा.
कश्मीरी जीपीटी की सफलता और प्रतिक्रियाएँ
यूसुफ के इस प्रयास को कश्मीरी समुदाय और तकनीकी दुनिया से जबरदस्त सराहना मिली है. कश्मीरी जीपीटी का लॉन्च होते ही इस पर अभूतपूर्व प्रतिक्रिया देखने को मिली. प्लेटफार्म पर केवल तीन दिनों के भीतर 4,000 से अधिक लोगों ने साइन अप किया. यूसुफ ने कहा, "प्रतिक्रिया हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा रही है." यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जानने और सीखने के लिए इस टूल से जुड़ने के लिए उत्सुक हैं.
हालांकि, यूसुफ ने यह भी स्वीकार किया कि कश्मीरी जीपीटी अभी भी अपने बीटा परीक्षण चरण में है और इसमें सुधार की आवश्यकता है. वह इसका और विकास करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिसमें वॉयस इंटरएक्शन जैसी नई सुविधाएँ जोड़ने की योजना है. उन्होंने कहा, "हम उपयोगकर्ताओं से प्रतिक्रिया प्राप्त कर रहे हैं और जैसे-जैसे हम इसे विकसित करते जाएंगे, वॉयस रिकग्निशन जैसी नई सुविधाएँ जोड़ी जाएँगी, जिससे इसे और अधिक सुलभ और उपयोगकर्ता-मित्र बना सकेंगे."
भविष्य का दृष्टिकोण और लक्ष्य
यूसुफ का भविष्य के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण है. वह एक पूरी तरह से अनुकूलित एआई मॉडल बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो कश्मीरी इतिहास, संस्कृति और परंपराओं की गहन जानकारी प्रदान करेगा. उन्होंने कहा, "कश्मीर का इतिहास 5,000 साल से अधिक पुराना है, और भारत में कोई भी अन्य स्थान इसकी समृद्ध विरासत से मेल नहीं खाता है.
इसे दस्तावेज़ करने और साझा करने की आवश्यकता है." कश्मीरी जीपीटी को एक सांस्कृतिक संसाधन के रूप में विकसित करके, उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कश्मीर की ऐतिहासिक धरोहर समय के साथ नष्ट न हो जाए.
शैक्षणिक समुदाय की प्रतिक्रिया
कश्मीरी भाषा और साहित्य के विशेषज्ञ और छात्र इस पहल को अत्यधिक सराह रहे हैं. कश्मीरी भाषा और संस्कृति के छात्र आसिफ शफी ने कहा, "यह उपकरण कश्मीरी भाषा और संस्कृति का अध्ययन करने वाले छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद होगा. यह शैक्षणिक उद्देश्यों और व्यक्तिगत सीखने दोनों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में काम कर सकता है."
कश्मीरी भाषा और संस्कृति का संरक्षण
यूसुफ का यह प्रयास न केवल कश्मीरी भाषा के संरक्षण में एक क्रांतिकारी कदम है, बल्कि यह भी यह साबित करता है कि आधुनिक तकनीक का उपयोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने और बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है.उनका मानना है, "हम हर दिन अधिक देशी वक्ताओं को खो रहे हैं, लेकिन शायद हम कल की तकनीक का उपयोग कल की आवाज़ को संरक्षित करने के लिए कर सकते हैं."
कश्मीरी जीपीटी का भविष्य उज्जवल प्रतीत होता है, और इसके निरंतर विकास और समर्थन से यह क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकता है. यूसुफ का यह प्रयास साबित करता है कि तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक संरक्षण को एक साथ लाकर हम अपनी विरासत को समय के साथ बचा सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों को एक अमूल्य धरोहर दे सकते हैं.