फरहान इसराइली/ जयपुर
राजस्थान के टोंक की छात्रा शाहजहां ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में आयोजित सैकंड ऑल इंडिया कुरानिक कैलीग्राफी कॉम्पिटिशन में पहला स्थान प्राप्त कर न केवल राज्य का बल्कि पूरे देश में इस प्राचीन कला को गर्व से स्थापित किया है. इस राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में देशभर के प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें शाहजहां ने अपनी उत्कृष्ट कला और मेहनत के बल पर शीर्ष स्थान हासिल किया.
उनकी इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर टोंक में एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें उन्हें गुलपोशी कर सम्मानित किया गया और उनकी सफलता के लिए दुआएं दी गईं.इस प्रतियोगिता में मरकज-तालीमुल-ख़ुतूत संस्थान से शाहजहां के साथ उनके उस्ताद जफर रजा ख़ान ने भी भाग लिया और दूसरा स्थान प्राप्त किया.
प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य कुरान की आयतों को खूबसूरत और कलात्मक अंदाज में लिखना था. इसमें हैदराबाद, महाराष्ट्र, कश्मीर और राजस्थान सहित देश के कई राज्यों के कैलीग्राफिस्ट ने हिस्सा लिया.शाहजहां ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों और अपनी कड़ी मेहनत को दिया.
उन्होंने इस अवसर पर कहा, "कैलीग्राफी एक ऐसी कला है, जो न केवल आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करती है. मैं चाहती हूं कि यह कला अगली पीढ़ी तक पहुंचे और इसे सीखने और अपनाने के लिए और लोग प्रेरित हों."
मरकज-तालीमुल-ख़ुतूत: एक उभरता हुआ संस्थान
टोंक में स्थित मरकज-तालीमुल-ख़ुतूत संस्थान, जिसे 1 जनवरी 2024 को स्थापित किया गया था, आज कैलीग्राफी कला को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभा रहा है. यह संस्थान बच्चों और युवाओं को ख़ताती और कला की शिक्षा देने का कार्य कर रहा है. संस्थान के दो अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ उस्ताद, जफर रजा खान और खुर्शीद आलम, यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
संस्थान में शाहजहां की सफलता पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें शाहजहां और उनके गुरु जफर रजा खान का भव्य स्वागत किया गया. इस मौके पर आये मेहमानों ने इस प्राचीन कला को सहेजने और आगे बढ़ाने के लिए शाहजहां और उनके गुरु की सराहना की.
टोंक: कैलीग्राफी की धरोहर को सहेजता शहर
टोंक, जिसे लंबे समय से कैलीग्राफी के क्षेत्र में अपनी पहचान के लिए जाना जाता है, आज भी इस कला को जीवंत बनाए हुए है. यहां के मौलाना आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान में उर्दू और अरबी कैलीग्राफी की पढ़ाई होती है. संस्थान में हर वर्ष 25 छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, जिन्हें दो वर्षीय पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रकार की कैलीग्राफी जैसे खाते नस्तालिक, नस्ख, खाते तुगरा, सुल और दीवानी के साथ-साथ ग्राफिक डिज़ाइनिंग की शिक्षा दी जाती है.
संस्थान के निदेशक डॉ. सैयद सादिक अली ने कहा, "कैलीग्राफी हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। हम इस कला को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि इसे आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्जीवित भी कर रहे हैं."
टोंक के कलाकार और संस्थान कैलीग्राफी को आधुनिक रूप देकर इसे युवाओं के बीच और अधिक लोकप्रिय बना रहे हैं. संस्थान के सैयद आरिफ अली ने बताया कि कैलीग्राफी की पारंपरिक कला को अब ग्राफिक डिज़ाइनिंग के साथ जोड़ा जा रहा है, जिससे यह कला अधिक आकर्षक और प्रासंगिक बन रही है.
जल्द ही मौलाना आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान में सुलेख कला पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसमें छात्रों और कलाकारों को सर्टिफिकेट प्रदान किए जाएंगे.
राष्ट्रीय पहचान और प्राचीन कला का संरक्षण
शाहजहां और उनके गुरु जफर रजा खान की उपलब्धि ने टोंक और राजस्थान को राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित किया है. यह सफलता केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस प्राचीन कला को पुनर्जीवित करने और इसे युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयासों का हिस्सा है. शाहजहां का यह योगदान निश्चित रूप से कैलीग्राफी के क्षेत्र में एक प्रेरणा बनेगा और राजस्थान की इस सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा.