दयाराम वशिष्ठ /फरीदाबाद( हरियाणा)
अगर कड़ी मेहनत, लगन और लक्ष्य प्राप्ति का जुनून हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं रहती. यह कहानी है मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) के 76 वर्षीय शिल्पकार खलील अहमद की, जिन्होंने गरीबी में न केवल बीड़ी बनाकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया, बल्कि कड़ी मेहनत और समर्पण के जरिए हस्तशिल्प के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई. आज, उनकी बनाई दरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जापान के प्रधानमंत्री को भेंट दी जा चुकी है, और उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है.
मिर्जापुर की विरासत को संजोते हुए
खलील अहमद का जीवन संघर्षों से भरा हुआ रहा है. उन्होंने अपने संघर्षों से न केवल अपनी बल्कि पूरे परिवार की तक़दीर बदली. उनके दादा और पिता ने हाथ से दरी बुनाई का काम शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
खलील अहमद के लिए यह धंधा सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक परंपरा और विरासत है, जिसे वह सहेजने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. वह मशीनों के बजाय हाथ से दरी बुनाई पर विश्वास करते हैं, ताकि मिर्जापुर की पारंपरिक कला और डिज़ाइन को बचाया जा सके.
भारत में अंतरराष्ट्रीय पहचान की शुरुआत
पद्मश्री अवार्डी खलील अहमद ने हस्तशिल्प क्षेत्र में भारत और विदेशों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी बनाई हुई दरी आज न केवल दिल्ली और बनारस के म्यूज़ियम की शोभा बढ़ा रही हैं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री को उनकी दरी भेंट दी थी.
यह दरी मुगलों के जमाने की डिज़ाइन को पुनः जीवित करती है, जिसे खलील अहमद ने ईरान से प्रभावित होकर भारत में अपनाया था.
खलील अहमद का संघर्षपूर्ण जीवन और योगदान
खलील अहमद का कहना है कि उन्होंने कभी गरीबी को काफी करीब से महसूस किया था. एक समय था जब उनके पास आमदनी का कोई साधन नहीं था.
बीड़ी बनाकर मजदूरी करते हुए उन्होंने अपना पेट और परिवार चलाया. लेकिन उनके अंदर एक जुनून था – अपनी कला को बचाए रखना और उसे बढ़ावा देना. उन्होंने अपने संघर्षों के बावजूद अपने पुश्तैनी काम को ना सिर्फ जीवित रखा, बल्कि उसे उच्चतम शिखर तक पहुंचाया.
विशेष सम्मान और पुरस्कार
खलील अहमद को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं. 2000 में, उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था.
इसके बाद 2007 में, वस्त्र मंत्रालय ने उन्हें शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया. 2018 में उत्तर प्रदेश दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया. 2022 में, उन्हें कलाश्री पुरस्कार भी प्राप्त हुआ.
खलील अहमद के परिवार का सहयोग और योगदान
खलील अहमद का यह सफर केवल उनका नहीं, बल्कि उनके परिवार का भी है. उनके तीन बेटे – इस्तखार अहमद, रूस्तम और जलील अहमद, इस पारंपरिक हस्तशिल्प व्यापार में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रहे हैं.
हर एक बेटे ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए कारोबार को नए ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. इस्तखार अहमद प्रोडक्शन का काम संभालते हैं, जबकि रूस्तम मार्केटिंग और जलील स्टॉल्स का काम देखते हैं.
नौकरी और रोजगार का अवसर: युवाओं के लिए प्रशिक्षण
खलील अहमद सिर्फ अपने व्यापार को ही नहीं बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह हजारों युवाओं को भी प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि वे अपने पैरों पर खड़ा हो सकें और आत्मनिर्भर बन सकें.
अब तक उन्होंने हजारों युवाओं को हस्तशिल्प में प्रशिक्षण दिया है. हालांकि, बदलते समय और युवाओं के बढ़ते रुचि के कारण यह परंपरा धीरे-धीरे फीकी पड़ रही है.
बदलते समय के साथ दरी उद्योग की चुनौतियाँ
आधुनिकता के इस दौर में चारपाई का स्थान बेड ने ले लिया है, जिससे दरी की मांग में कमी आई है. इसके अलावा, युवा पीढ़ी अब इस हस्तशिल्प उद्योग में कम रुचि दिखा रही है, क्योंकि उन्हें पढ़ाई-लिखाई के बाद अच्छे वेतन वाली नौकरियों का मिलना आसान होता है.
फिर भी, खलील अहमद और उनके परिवार ने यह उद्योग जीवित रखने के लिए न केवल कठिन मेहनत की है, बल्कि युवाओं को भी इससे जोड़ने की कोशिश की है.
हस्तशिल्प उद्योग में बदलाव
खलील अहमद का आदर्श और योगदान
खलील अहमद का जीवन संघर्ष, समर्पण और कला के प्रति प्रेम का प्रतीक है.वह न केवल एक कुशल शिल्पकार हैं, बल्कि उनके द्वारा स्थापित हस्तशिल्प उद्योग ने मिर्जापुर को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाई है. उनका काम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनकर रहेगा और मिर्जापुर की हस्तशिल्प विरासत को जीवित रखेगा.
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर मेहनत और समर्पण से कोई कार्य किया जाए, तो वह न केवल हमारे जीवन को बदल सकता है, बल्कि पूरी दुनिया में उसकी पहचान बन सकती है.