मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
मुस्लिम समाज में शादी में देरी या अधिक उम्र होने के कारण लड़के-लड़कियों की शादी की चुनौतियाँ बढ़ रही हैं.अक्सर देखा जाता है कि समय पर विवाह न होने पर लड़कियाँ अधिक उम्र के लड़कों से शादी करने को मजबूर होती हैं, जिससे रिश्तों में तनाव पैदा होता है.कई मामलों में, दहेज की माँग भी एक बड़ी समस्या बन जाती है.इसी बीच, दिल्ली के ओखला इलाके की एक खास शख्सियत, सैयद मेहर अफशां, जिन्हें प्यार से 'बाजी' कहा जाता है.
पिछले 35सालों से समाज में दहेज-मुक्त शादियाँ कराने का बीड़ा उठाए हुए हैं.अब तक चार हजार से ज्यादा जोड़ियों की बगैर दहेज के शादी कराने का उनका सफर कई मुस्लिम परिवारों के लिए प्रेरणा बन चुका है.आइए जानते हैं उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में.
‘बाजी’ ने कैसे शुरू किया अपना मिशन?
करीब 35 साल पहले जब सैयद मेहर अफशां अपने ससुराल आईं, तब उन्होंने समाज में महिलाओं के दिल की पीड़ा को करीब से देखा.उन्हें महसूस हुआ कि कई महिलाएँ अपनी बेटियों की शादी को लेकर चिंतित हैं.दहेज की माँग या उम्र के कारण उनके रिश्ते नहीं बन पा रहे.
उन्होंने समाज की इन तकलीफों को अपनी प्रेरणा बनाई और एक समूह बनाकर लड़के-लड़कियों के रिश्ते करवाने का काम शुरू किया.बाजी का मानना है कि समाज में सादगी और दहेज-मुक्त शादियाँ ही संतुलित और खुशहाल जीवन का आधार हैं.उनके इस प्रयास में समय के साथ करीब सौ से अधिक लोग जुड़ गए, जो इस नेक काम में उनका साथ दे रहे हैं.
किस उम्र के लड़के-लड़कियों के रिश्ते आते हैं बाजी के पास ?
बाजी के समूह में अलग-अलग उम्र के लड़के-लड़कियों के रिश्ते आते हैं.उन्होंने बताया, "लड़कियों की उम्र आमतौर पर 25से 40साल के बीच होती है, जबकि लड़कों की उम्र 35से 55साल तक होती है.जिन लड़कियों की उम्र 25-30के बीच होती है, उनकी शादी जल्द हो जाती है.लेकिन उम्र बढ़ने पर उनकी शादी में कठिनाइयाँ आने लगती हैं.इसी तरह, 40के पार पहुँचने वाले लड़कों के लिए भी सही रिश्ता ढूँढना चुनौतीपूर्ण होता है."
मुस्लिम समाज में शादियों में आने वाली समस्याएँ
बाजी बताती हैं कि मुस्लिम समाज में शादियों में कई चुनौतियाँ सामने आती हैं.एक ओर, दहेज की माँग कई परिवारों के लिए बाधा बनती है, तो दूसरी ओर, उम्र की अधिकता भी समस्याओं का कारण बनती है.उन्होंने कहा, "लड़के वाले दहेज के रूप में कई तरह की माँग करते हैं.गरीब लड़कियों के परिवार ऐसी माँगें पूरी नहीं कर पाते.रिश्ते टूट जाते हैं.समाज को इस दिशा में जागरूक होना चाहिए कि शिक्षा और संपत्ति से बढ़कर रिश्तों में परस्पर समझ और भावनाओं का महत्व होता है."
युवाओं में बढ़ती पश्चिमी सभ्यता की ओर रुझान
बाजी इस बात पर भी चिंता जताती हैं कि आजकल के युवा भारतीय संस्कृति को छोड़कर पश्चिमी सभ्यता को अपना रहे हैं.विशेषकर लड़कियाँ अधिक उम्र में शादी करके आरामदायक जिंदगी जीने का सपना देखती हैं, लेकिन जब शादी का समय आता है तो रिश्तों में सामंजस्य की कमी महसूस होती है.उनका मानना है कि उच्च शिक्षा अवश्य हासिल की जानी चाहिए.इसके साथ विवाह की उम्र का भी ख्याल रखना चाहिए ताकि शादी के बाद सामंजस्य बनाए रखा जा सके.
दहेज-मुक्त शादियाँ: एक नई दिशा की ओर
सैयद मेहर अफशां ने अपने मिशन में दहेज-मुक्त शादियों को प्रमुखता दी है.वह कहती हैं, "मैं उन रिश्तों की बात ही नहीं करती जहाँ दहेज की माँग की जाती है.अगर लड़के वाले दहेज माँगते हैं, तो मैं साफ इंकार कर देती हूँ." उनका मानना है कि दहेज-मुक्त शादियाँ ही सच्चे अर्थों में समाज को नई दिशा दे सकती हैं.हालांकि, कुछ मामलों में लड़के वाले अपनी माँग पर अड़े रहते हैं, और लड़की वालों को मजबूरी में उनकी माँग पूरी करनी पड़ती है.
सैयद मेहर अफशां का यह काम न केवल मुस्लिम समाज में बल्कि अन्य समुदायों में भी एक मिसाल बन गया है.दहेज-मुक्त और सादगीपूर्ण शादियों के उनके इस प्रयास से कई परिवारों को न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी राहत मिली है.ओखला की इस 'बाजी' का योगदान हमारे समाज के लिए एक प्रेरणा है, जिससे दहेज जैसी बुराई से निपटने और खुशहाल, सादगीपूर्ण शादियों के एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही है.