मुफ्ती अहमद हसन : जिनके इलाज ने दी सर्जरी को मात, आज भी ज़िंदा है उनकी विरासत

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 16-10-2024
Hakeem Zahid Hassan
Hakeem Zahid Hassan

 

फरहान इसराईली/ जयपुर

जयपुर की गंगा-जमुनी तहजीब और यूनानी चिकित्सा की परंपरा को जीवनभर संजोए रखने वाले हकीम मुफ्ती अहमद हसन साहब का नाम राजस्थान ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. मुफ्ती साहब जयपुर के न केवल एक बड़े इस्लामिक विद्वान थे,  वह यूनानी चिकित्सा के विशेषज्ञ भी थे. उनकी चिकित्सा सेवाओं और विद्वता के कारण उन्हें समाज में एक अलग पहचान मिली थी.

इल्म का समंदर थे मुफ्ती अहमद हसन

मुफ्ती अहमद हसन को अक्सर "इल्म का समंदर" कहा जाता था. वे कई शास्त्रों और विधाओं के जानकार थे. उन्होंने अरबी, फारसी, और उर्दू भाषाओं में गहरी महारत हासिल की थी. साथ ही, वह यूनानी चिकित्सा पद्धति के एक जाने-माने हकीम थे. मुफ्ती साहब ने 100 से अधिक किताबें लिखीं. दीनी तालीम की रोशनी फैलाने में भी अहम भूमिका निभाई.

उनके इलाज की लोकप्रियता केवल आम लोगों में ही नहीं थी, बल्कि बड़े नेता, अभिनेता, और देश-विदेश की प्रमुख हस्तियां भी उनके मरीज़ हुआ करती थीं. राजस्थान पत्रिका समूह के संस्थापक स्वर्गीय कर्पूरचंद कुलिश, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला और सऊदी अरब के कई शेख उनके मरीज़ रहे. ज्ञानी जैल सिंह के नाम पर तो उन्होंने एक खास यूनानी दवा "खमीरा जैलसिंह" भी बनाई थी.


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टोंक से जयपुर तक का सफर

मुफ्ती साहब का जन्म 1914 में राजस्थान के टोंक शहर के अब्दुल मजीद खान के घर हुआ था. उन्होंने टोंक रियासत से यूनानी चिकित्सा में प्रमाण पत्र प्राप्त किया और वहां के मदरसा फुरकानिया से हदीसों की पढ़ाई की. टोंक उस समय मुस्लिम रियासत थी और वहां शरीयत (मुस्लिम लॉ) लागू था। उन्होंने कुरान पाक हिफ्ज़ किया और "कारी" की डिग्री भी हासिल की.

1950 में, रियासतों के खात्मे के बाद, मुफ्ती साहब अपने परिवार के साथ जयपुर आ गए. रामगंज चौपड़ के पास "इरफानी दवाखाना" नाम से अपना क्लिनिक शुरू किया. यहां उन्होंने यूनानी चिकित्सा के क्षेत्र में अपने हुनर का प्रदर्शन किया और जल्द ही उनका नाम जयपुर और देशभर में प्रसिद्ध हो गया.


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गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक

मुफ्ती अहमद हसन साहब न केवल एक बेहतरीन चिकित्सक थे, जयपुर की गंगा-जमुनी तहजीब के भी प्रतीक माने जाते थे. वे धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे के समर्थक थे और उनके जीवन में यह मूल्य हर कदम पर दिखते थे.

उनका निधन 2016 में 105 वर्ष की आयु में जयपुर में हुआ. उनके जाने से चिकित्सा और दीनी इल्म की दुनिया को बड़ा नुकसान हुआ. आज उनके बेटे हकीम जाहिद हसन उनके कदमों पर चलते हुए यूनानी चिकित्सा और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

मुफ्ती अहमद हसन ने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा मानवता की सेवा में बिताया और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों और चिकित्सा पद्धति को लेकर उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी.जयपुर की मशहूर शख्सियत, हकीम मुफ्ती अहमद हसन साहब की चिकित्सा और समाज सेवा की विरासत आज भी जिंदा है.

उनकी याद में राजधानी जयपुर में एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है. किशनपोल से विधायक अमीन कागजी बताते हैं कि मुफ्ती साहब ने अपने जीवन में जो सेवाएं दी हैं, उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.
 इसलिए रामगंज स्थित फूटा खुर्रा का नाम अब हकीम मुफ्ती अहमद हसन रोड रख दिया गया है

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मुफ्ती अहमद हसन


जाहिद हसन संभाल रहे हैं विरासत

मुफ्ती साहब के बड़े बेटे हकीम जाहिद हसन आज अपने वालिद की चिकित्सा परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. टोंक में 1 सितंबर 1950 को जन्मे जाहिद हसन 10 साल की उम्र में अपने पिता के साथ जयपुर आ गए थे. यहां उन्होंने हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई पूरी की.

फिर तिब्बिया कॉलेज से डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने एम.ए. (इतिहास) और एल.एल.बी. की डिग्री भी प्राप्त की. वे इरफानी दवाखाना में बैठकर अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए लोगों का इलाज करते हैं.

जाहिद हसन साहब को सामाजिक समस्याओं पर भी गहरी चिंता है. उन्होंने सड़क दुर्घटनाओं पर एक महत्वपूर्ण किताब लिखी है, जिसका नाम 'एविक्शन एक्ट' है, जो बहुत मशहूर हुई. इसके अलावा उन्होंने रेडियो पर भी कई कार्यक्रम किए हैं.

टोंक में हुआ करते थे हिकमत के बेहतरीन केंद्र

जाहिद हसन के पास भी वही शिफा है, जो उनके वालिद के पास थी. उनकी सबसे खास बात यह है कि वे मरीज से कोई फीस नहीं लेते, सिर्फ दवाखाने की दवाइयों का चार्ज लेते हैं. मरीज की नब्ज देखकर वे उसकी बीमारी का पता लगाते हैं और इलाज करते हैं. उनके पास अम्बर जैसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी होती हैं, जिन्हें वे काठमांडू से मंगाते हैं.

जाहिद हसन बताते हैं कि उनके वालिद साहब छात्रों को यूनानी चिकित्सा निशुल्क सिखाते थे और सरकारी अस्पतालों में भी उन्हें सम्मान के साथ बुलाया जाता था, जहां वे विभिन्न विषयों पर व्याख्यान देते थे. दीनी तालीम के प्रति उनका गहरा जुड़ाव था और उन्होंने सौ से अधिक किताबें लिखीं। जयपुर स्थापना दिवस पर भी उन्हें सम्मानित किया गया था.
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मशहूर शख्सियतों के इलाज

हकीम मुफ्ती अहमद हसन साहब ने कई ऐसी जानी-मानी हस्तियों का इलाज किया, जिन्हें डॉक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी थी. इनमें राजस्थान पत्रिका के संस्थापक स्वर्गीय कर्पूरचंद कुलिश की भतीजी, स्वर्गीय बरकतुल्लाह खान की पत्नी, महारानी गायत्री देवी और कर्नल भवानी सिंह शामिल थे.

एक बार एक व्यक्ति जे. हेनरी ने उनके पास इलाज कराया, जिन्हें गले में भोजन नली के पास पथरी की समस्या थी. डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, लेकिन मुफ्ती साहब की दवा से उनकी पथरी बिना सर्जरी के ठीक हो गई.

दिलीप कुमार का इलाज

हकीम जाहिद हसन साहब ने मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार का भी इलाज किया है. एक बार सायरा बानो के बुलावे पर वे उन्हें देखने मुंबई गए थे. जाहिद साहब आज भी नब्ज देखकर बीमारी का पता लगाते हैं और अपने मरीजों से कोई कंसल्टेशन फीस नहीं लेते, सिर्फ दवाइयों का खर्च लेते हैं. दिलीप कुमार की बहन फरीदा खान का भी उन्होंने इलाज किया, जो इलाज के लिए अमेरिका से आई थीं.

जाहिद हसन साहब अपने वालिद साहब की जीवनशैली और आदतों को याद करते हुए बताते हैं कि उनके वालिद ने 105 साल की उम्र तक कभी कोई दवा नहीं ली. वे सादा जीवन जीते थे. दिन में तीन बार मीठा खाते थे . देसी घी की रोटी खाते थे. शायद इसी सादगी और अपने माता-पिता की खिदमत ने उन्हें लंबी उम्र दी.

हकीम जाहिद हसन साहब मानते हैं कि तिब्बी खिदमत अल्लाह की मेहरबानी से होती है, और इसी खिदमत में उनकी दुआएं भी शामिल होती हैं, जो अल्लाह कुबूल करता है.