हथकरघा की दुनिया में मिसाल बने मोहम्मद अय्यूब, कड़ी मेहनत से पाया मुकाम

Story by  दयाराम वशिष्ठ | Published by  [email protected] | Date 28-02-2025
Mohammad Ayub became a handicraftsman due to his father's slap and mother's love, hard work got him recognition
Mohammad Ayub became a handicraftsman due to his father's slap and mother's love, hard work got him recognition

 

दयाराम वशिष्ठ /फरीदाबाद (हरियाणा)

भारत के कुटीर उद्योगों में हथकरघा उद्योग की प्रमुख भूमिका रही है. यह न केवल ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार देता है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है. ऐसे में उज्जैन के 76 वर्षीय हस्तशिल्पकार मोहम्मद अय्युब ने कड़ी मेहनत और लगन से न केवल अपने पारंपरिक कारोबार को बुलंदी तक पहुँचाया, बल्कि अपने अनूठे डिज़ाइन से राज्य स्तर पर प्रतिष्ठित टीसी प्रिंट स्टेट अवार्ड भी हासिल किया.

उनकी सफलता एक प्रेरणादायक कहानी बन गई है, जिसमें उनके संघर्ष, धैर्य और परिवार के समर्थन की कहानी छिपी हुई है.

 

 

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बचपन में बाप की डांट और मां का प्यार: संघर्ष की शुरुआत

मोहम्मद अय्युब का जन्म उज्जैन में हुआ। 12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता से काम सीखना शुरू किया. शुरुआती दिनों में उन्हें अखबार पर प्रिंट का काम सिखाया गया, जिसमें उन्होंने डिजाइन बनाने की कला सीखी.

हालांकि, एक बार प्रिंट में गलती करने पर उनके पिता ने उन्हें थप्पड़ तक मार दिया. उस घटना के बाद वह घर छोड़कर भाग गए, लेकिन शाम को घर लौटने पर उनकी मां ने पिता की डांट को नजरअंदाज कर उन्हें प्यार दिया और फिर से काम में मेहनत करने की सलाह दी.

यही वह पल था जिसने अय्युब के दिल में काम को लेकर समर्पण और मेहनत की आग जलाई. उन्होंने दिन-रात मेहनत कर अपनी कला को परिष्कृत किया और एक बेहतरीन डिजाइनर बनने का रास्ता खोला.

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अखबार से पिलो कवर तक: उभरता हुआ सितारा

अखबार पर प्रिंट के काम में महारत हासिल करने के बाद, अय्युब ने पिलो कवर पर प्रिंटिंग का काम शुरू किया. इसके बाद उन्होंने शलवार, साड़ी, नाइट गाउन, कुर्ती और अन्य वस्त्र उत्पादों पर डिजाइन बनाना शुरू किया.

उनके डिजाइन इतने अच्छे थे कि धीरे-धीरे उनका काम लोगों में लोकप्रिय हो गया. उनके माता-पिता, जो पहले उनके काम में गलतियों पर गुस्से में आते थे, अब उनके काम में सुधार को देखकर गर्व महसूस करने लगे.

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1983 में मिला स्टेट अवार्ड: एक नई पहचान

मोहम्मद अय्युब के डिज़ाइन में लगातार सुधार होता गया और 1980 के दशक के मध्य तक, वे अपने खुद के कपड़े पर प्रिंट करके उन्हें बेचने लगे. उनके डिज़ाइनों की बाजार में भारी मांग थी. 1983 में टीसी प्रिंट क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें राज्य स्तर पर प्रतिष्ठित टीसी प्रिंट अवार्ड से सम्मानित किया गया. यह अवार्ड उनकी मेहनत का प्रतिफल था और इसने उनके काम को और भी पहचान दिलाई.

मेलों में स्टॉल लगाने से बढ़ी कारोबार की रफ्तार

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1983 में अवार्ड मिलने के बाद, अय्युब ने 2001 में सूरजकुंड मेला समेत विभिन्न स्थानों पर स्टॉल लगाना शुरू किया. इससे उनके कारोबार में काफी वृद्धि हुई। मेलों में उनकी उपस्थिति ने उनके डिज़ाइन को और भी लोकप्रिय किया और उन्होंने देशभर में एक मजबूत पहचान बनाई.

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तीसरी पीढ़ी का कारोबार: बेटे ने संभाला जिम्मा

आज मोहम्मद अय्युब का यह हस्तशिल्प कार्य उनके बेटे मोहम्मद इरफान द्वारा संभाला जा रहा है. मोहम्मद इरफान ने अपने पिता के कारोबार को और भी आगे बढ़ाया है. अय्युब के अन्य बेटे मोहम्मद इमरान बेल्डिंग का काम करते हैं, जबकि तीसरे बेटे सुहेल ने उज्जैन के भैरवगढ़ में कपड़े की बाटिक प्रिंटिंग शुरू की है, जो 100 साल से ज्यादा पुरानी कला है और अब देश और विदेश में प्रसिद्ध है। चौथे बेटे मोहम्मद आमिन भी कपड़ा उद्योग में पिता की मदद करता है.

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कड़ी मेहनत का असर: युवा हाथ से हस्तशिल्प से दूरी बना रहे हैं

हालांकि अय्युब का कारोबार अब उनकी तीसरी पीढ़ी के हाथों में है, लेकिन उनके बेटे मोहम्मद इरफान का मानना है कि इस उद्योग में कड़ी मेहनत की जरूरत है, जिससे युवा वर्ग इसे अपनाने से कतराता है. उनका कहना है कि उनके बेटे सादिक ने 10वीं कक्षा के बाद यह काम शुरू किया था, लेकिन दो साल बाद वह इसे छोड़कर मोबाइल के काम में लग गए.

इसके अलावा, वे यह भी बताते हैं कि उज्जैन में कपड़ा उद्योग की एक अहम पहचान थी, जो अब धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन फिर भी पावरलूम में कपड़ा उत्पादन जारी है और उसकी गुणवत्ता के लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध है.

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अखिरी शब्द: एक प्रेरणास्त्रोत का संघर्ष और सफलता

मोहम्मद अय्युब की कहानी यह बताती है कि संघर्ष और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. उनकी कड़ी मेहनत, पिता की डांट और मां के प्यार ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया. आज वह न केवल खुद एक प्रेरणा स्रोत हैं, बल्कि उनकी पीढ़ी भी इस उद्योग को आगे बढ़ाने में लगी है. उनके द्वारा सीखी गई कला और डिजाइन ने न सिर्फ उन्हें सम्मान दिलाया बल्कि भारतीय हस्तशिल्प को भी वैश्विक पहचान दिलाई है.