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पाँच दशकों की साहित्यिक यात्रा: डॉ. पेरुगु रामकृष्ण की कविताएँ अब वैश्विक मंच पर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  mahashmi@awazthevoice.in | Date 22-03-2025
Literary journey of five decades: Dr. Perugu Ramakrishna's poems now on the global stage
Literary journey of five decades: Dr. Perugu Ramakrishna's poems now on the global stage

 

डी. सुरेन्द्र कुमार /नेल्लोर (तेलंगाना)

पाँच दशकों से अधिक के अपने साहित्यिक करियर में, तेलुगु कवि डॉ. पेरुगु रामकृष्ण ने भारतीय साहित्य में अपनी एक अनोखी पहचान बनाई है. 26 पुस्तकों के लेखक, रामकृष्ण की काव्य रचनाएँ भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर बन चुकी हैं.

उन्हें सरस्वती सम्मान, जातीय राज्य भाषा गौरव सम्मान और मातृभाषा सेवा शिरोमणि जैसी अनेक प्रतिष्ठित उपाधियों से नवाजा गया है. उनके साहित्यिक योगदान के कारण उन्हें वंडर बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा एक प्रतिष्ठित क्षेत्रीय भाषा के कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है.

कविता का पर्यावरणीय प्रभाव और वैश्विक पहचान

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार,डॉ. पेरुगु रामकृष्ण की कविता, विशेष रूप से फ्लेमिंगो, पर्यावरण साहित्य में एक मील का पत्थर साबित हुई है. यह कविता 2006 के फ्लेमिंगो फेस्टिवल के दौरान प्रकाशित हुई थी और इसने भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी व्यापक रूप से चर्चा बटोरी.

इस कविता का अनुवाद छह भारतीय और दो वैश्विक भाषाओं में किया गया है, और यह काव्य रचनाएँ तेलुगु पाठ्यपुस्तक तेलुगु परिमलम में भी शामिल की गई हैं, जो किसी भी कवि के लिए एक दुर्लभ सम्मान है.

साहित्यिक यात्रा की शुरुआत और योगदान

27 मई, 1960 को नेल्लोर में जन्मे डॉ. पेरुगु रामकृष्ण ने अपनी शिक्षा आंध्र विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में और उस्मानिया विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में एमए की डिग्री प्राप्त की.

इसके साथ ही उन्होंने औद्योगिक संबंध, कार्मिक प्रबंधन और कंप्यूटर अनुप्रयोगों में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी किया. उनकी साहित्यिक यात्रा 1975 में तब शुरू हुई, जब उनकी पहली कविता एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई.

इसके बाद 1980 के दशक में, उन्होंने मनसा वीणा नामक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया, जिससे उनकी साहित्यिक क्षमता और प्रतिभा का परिचय मिला.

साहित्यिक पुरस्कार और सम्मान

रामकृष्ण की काव्य उत्कृष्टता और योगदान के कारण उन्हें 150 से अधिक राष्ट्रीय और 60 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया विशिष्ट कवि उगादि पुरस्कार, तेलुगु विश्वविद्यालय कीर्ति पुरस्कार, और तेलंगाना साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं.

इसके अलावा, उनके द्वारा किए गए अनुवादों ने भी साहित्यिक चर्चा को समृद्ध किया है, जो नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया और साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं द्वारा सराहे गए हैं.

वैश्विक स्तर पर तेलुगु कविता का प्रतिनिधित्व

अपने साहित्यिक कार्य के माध्यम से डॉ. पेरुगु रामकृष्ण ने तेलुगु कविता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है. उन्होंने साहित्य अकादमी सत्रों, सार्क लेखकों के सम्मेलनों और अंतर्राष्ट्रीय कविता समारोहों में भाग लिया है.

2011 में उन्होंने ग्रीस में तेलुगु कविता का अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया और उसके बाद अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों का दौरा भी किया. उनके कार्य ने न केवल भारतीय साहित्य बल्कि वैश्विक साहित्यिक मंच पर भी तेलुगु कविता को एक नई पहचान दिलाई है.

कविता से परे: एक समाजसेवी और साहित्यिक प्रबंधक

कविता के अलावा, डॉ. पेरुगु रामकृष्ण समाज के लिए भी एक प्रेरणास्त्रोत रहे हैं. वह एक प्रगतिशील किसानों की मासिक पत्रिका का संपादन करते हैं और विभिन्न साहित्यिक पृष्ठों का भी प्रबंधन करते हैं.

2018 से वह आंध्र प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य कार्यकारी सदस्य और भोपाल में स्थापित अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के राज्य अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं.

प्रेरणा स्रोत: परिवार और गुरु

रामकृष्ण ने अपनी साहित्यिक यात्रा में परिवार और गुरु से प्रेरणा ली. उनकी माँ ने बताया कि उनके पिता संरचित छंद में कविताएँ लिखा करते थे, जबकि उनके बड़े भाई, फणीभूषण कुमार, जिन्होंने 22 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा, तेलुगु और अंग्रेजी दोनों में कविताएँ लिखते थे.

रामकृष्ण को अपनी कविताओं के लिए प्रेरणा महान कवि गुंटूरू शेषेंद्र सरमा से मिली, जो नेल्लोर जिले के थोटापल्ली गुडूर के एक साहित्यिक गुरु थे.उन्होंने रामकृष्ण के पहले कविता संग्रह वेनेला जलापथम (चाँदनी झरना) के लिए प्रस्तावना लिखी थी.

कविता: एक दूरदर्शी यात्रा

डॉ. पेरुगु रामकृष्ण की यात्रा केवल एक कवि की नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी की है, जिसने तेलुगु साहित्य को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाई है. उनकी कविताएँ न केवल सांस्कृतिक लोकाचार में गहराई से निहित हैं, बल्कि वे सार्वभौमिक रूप से गूंजती हैं.

उनका साहित्य आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करता है और वह एक ऐसी विरासत छोड़ रहे हैं, जो आने वाले वर्षों तक फलती-फूलती रहेगी.डॉ. पेरुगु रामकृष्ण का साहित्यिक योगदान अत्यधिक सम्मानित और प्रेरणादायक है.

उनकी कविताएँ न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध करती हैं, बल्कि उन्होंने तेलुगु कविता को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई है. उनके कार्य और योगदान साहित्यिक दुनिया में अनमोल धरोहर के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे.