पारंपरिक कानी शॉल के लिए कश्मीरी कारीगर फारूक अहमद मीर को पद्म श्री सम्मान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-01-2025
Kashmiri artisan Farooq Ahmad Mir awarded Padma Shri for traditional Kani shawl
Kashmiri artisan Farooq Ahmad Mir awarded Padma Shri for traditional Kani shawl

 

एहसान फाजिली/ श्रीनगर

कश्मीर के पारंपरिक हस्तशिल्प कानी शॉल और पश्मीना बुनाई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले श्रीनगर के प्रसिद्ध कारीगर फारूक अहमद मीर को गणतंत्र दिवस 2025 की पूर्व संध्या पर पद्म श्री से सम्मानित किया गया. 72 वर्षीय फारूक अहमद मीर को यह सम्मान उनकी छह दशकों से भी अधिक लंबी यात्रा और कश्मीर की पारंपरिक कारीगरी को संरक्षित रखने के लिए दिया गया है.

फारूक अहमद मीर का जीवन इस अद्वितीय कला को समर्पित है. बचपन से ही शॉल बुनाई में निपुणता हासिल करने वाले फारूक अहमद मीर की उंगलियां और अंगूठे उनकी मेहनत और सतत अभ्यास के कारण लगभग मिट चुके हैं. उनके बेटे फैयाज अहमद मीर बताते हैं, "शॉल बनाने के उनके लगातार काम ने उनकी उंगलियों को इस हद तक प्रभावित किया कि वे बायोमेट्रिक स्कैनर पर छाप छोड़ने में असमर्थ हैं."

पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा

फारूक अहमद मीर ने यह कला अपने पिता से महज 10 साल की उम्र में सीखी. उस वक्त वे करघे तक पहुंचने के लिए बहुत छोटे थे और पारंपरिक लकड़ी के जूते पहनकर करघे तक पहुंचते थे. उन्होंने अपने बेटों माजिद अहमद मीर, अल्ताफ हुसैन मीर और फैयाज अहमद मीर को भी इस कला का प्रशिक्षण दिया.

मीर परिवार ने न केवल इस कला को संरक्षित रखा, बल्कि इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. फैयाज अहमद मीर बताते हैं कि परिवार के तीनों भाई उच्च शिक्षित हैं, लेकिन उन्होंने इस पारंपरिक कला को अपना जीवन समर्पित किया है.

माजिद अहमद मीर, जिन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है, वर्तमान में दिल्ली हवाई अड्डे पर एक कार्यशाला चला रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने लंदन, स्वीडन, स्पेन और जापान जैसे देशों में भी कार्यशालाएं आयोजित कर अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा अर्जित की है.दूसरे बेटे अल्ताफ हुसैन मीर ने अर्जेंटीना में कश्मीरी शिल्प की कार्यशालाएं आयोजित कर इसे वैश्विक पहचान दिलाई.
kashmir
पहचान और सम्मान

फारूक अहमद मीर को 2014 में संत कबीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उनका परिवार 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य पुरस्कार से भी नवाजा गया. पद्म श्री मिलने के बाद फारूक अहमद मीर ने इसे "कड़ी मेहनत और सतत प्रयासों का फल" बताया. उन्होंने कहा, "यह सम्मान हमारे परिवार की पीढ़ियों की मेहनत का परिणाम है."

कश्मीर हस्तशिल्प को नई पहचान

कश्मीर के हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग ने फारूक अहमद मीर को उनके योगदान के लिए सराहा. विभाग के निदेशक मुसरत इस्लाम ने कहा, "यह सम्मान कानी बुनाई के स्वदेशी शिल्प और पश्मीना कपड़ों पर सोज़नी कढ़ाई जैसे शिल्पों को नई पहचान देगा. ये शिल्प वैश्विक बाजार में उभरने की बड़ी क्षमता रखते हैं."

मुसरत इस्लाम ने यह भी बताया कि विभाग जल्द ही सभी पुरस्कार विजेताओं के लिए एक समारोह आयोजित करेगा. इसके तहत पुरस्कार विजेताओं को विभाग के प्रशिक्षुओं से परिचित कराया जाएगा, ताकि युवा पीढ़ी को इस परंपरा से जोड़ने की प्रेरणा मिल सके.

कानी शॉल: एक अनमोल विरासत

कानी शॉल बुनाई कश्मीर की एक ऐतिहासिक कला है, जिसे बनाने में महीनों का समय लगता है. कानी शॉल की बुनाई के लिए शुद्ध पश्मीना ऊन का उपयोग किया जाता है. इसमें जटिल डिज़ाइन और परंपरागत पैटर्न बनाए जाते हैं, जो इसे वैश्विक स्तर पर खास बनाते हैं.

सरकार और परिवार की भूमिका

फारूक अहमद मीर के घर पर हस्तशिल्प विभाग के अधिकारियों ने दौरा कर उन्हें सम्मानित किया. इस दौरान अधिकारियों ने परिवार के योगदान की सराहना की और युवाओं को इस कला से जोड़ने के लिए कदम उठाने की बात कही.

मीर परिवार का यह योगदान कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह सम्मान कश्मीर की अनमोल कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के प्रयासों को और मजबूती प्रदान करेगा.