उन्होंने अपने ही कारखाने में हेल्पर बनकर शुरुआत की और कड़ी मेहनत करते हुए न केवल अपने परिवार के पुस्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाया, बल्कि राष्ट्रपति अवार्ड भी जीता. उनका अगला सपना अब अपनी कला को विदेशों तक पहुंचाने का है.
जमालुद्दीन की सफलता की कहानी
जमालुद्दीन का यह सफर बेहद प्रेरणादायक है. उनका परिवार पीढ़ियों से हस्तशिल्प का काम करता आ रहा है. उनके दादा ने खद्दर की चद्दर बनाकर इसे गांवों में बेचा, और फिर उनके पिता ने साड़ियों का काम शुरू किया.
जब जमालुद्दीन महज 14 साल के थे, तब से ही उन्होंने अपने पिता मोहम्मद इस्लाम के साथ काम करना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में उन्होंने अपने ही कारखाने में हेल्पर का काम किया, जहां उन्हें कारीगरों से काम सीखने का अवसर मिला. इस कठिन यात्रा के दौरान उन्होंने न केवल अपने कौशल को निखारा, बल्कि सच्ची मेहनत का भी महत्व समझा.
राष्ट्रपति अवार्ड की ओर बढ़ते कदम
जमालुद्दीन ने अपने अनुभव और कला को और बेहतर बनाने के लिए न केवल मेहनत की, बल्कि नवाचार भी किया. उन्होंने साड़ी की डिजाइन में नई सोच डाली और अलग-अलग पैटर्न्स के साथ काम किया. उनका पहला बड़ा काम था जामदानी रंगकाट साड़ी, जिसे उन्होंने तीन महीने की कड़ी मेहनत से तैयार किया.
यही साड़ी उनकी किस्मत का मोड़ साबित हुई. वर्ष 2009 में उन्होंने राष्ट्रपति अवार्ड जीता, जो उनके जीवन का सबसे बड़ा सम्मान था। इस साड़ी की कीमत करीब डेढ़ लाख रुपये थी, जो इस हस्तशिल्प के उच्चतम स्तर को दर्शाती है.
परिवार के साथ मिलकर व्यवसाय का विस्तार
जमालुद्दीन अकेले इस सफर में नहीं थे. उनके छह भाइयों ने भी इस परिवार व्यवसाय को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। सभी भाइयों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गईं, और एक साथ मिलकर उन्होंने अपने हस्तशिल्प के काम को भारत के विभिन्न हिस्सों तक फैलाया.
जमालुद्दीन और उनके परिवार ने दिल्ली, सूरजकुंड, बेंगलुरू, कुरुक्षेत्र जैसे प्रमुख शहरों में मेलों में अपने हाथ से बने माल की प्रदर्शनी लगाई, जहां उनकी डिजाइन ग्राहकों द्वारा बहुत पसंद की गई.
हस्तशिल्प के काम में रुचि और उसकी विशेषता
जमालुद्दीन का मानना है कि हथकरधा का काम सबसे अच्छा है. भले ही इसमें मेहनत ज्यादा हो, लेकिन यह काम परिवार के साथ घर पर किया जा सकता है, और इसमें कहीं अधिक संतुष्टि भी मिलती है.
उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान यह भी महसूस किया कि अन्य व्यवसायों में प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ अधिक है, लेकिन हस्तशिल्प में वो संतुलन और शांति है जो उन्हें अपने परिवार के साथ रहते हुए मिलता है.
सीमित संसाधनों के बावजूद सफलता की ओर
जमालुद्दीन ने अपनी यात्रा की शुरुआत एक हैंडलूम से की थी, जिसका मूल्य लगभग 60 से 70 हजार रुपये था. शुरुआती दिनों में पैसों की कमी थी, लेकिन धीरे-धीरे काम बढ़ता गया .
अब उनके पास 8 से 10 हैंडलूम हैं, जिन पर करीब 30 कारीगर काम करते हैं. जमालुद्दीन का कहना है कि उनके संघर्ष और दृढ़ नायक का यही परिणाम है कि आज वह अपने काम को नए आयाम दे रहे हैं.
शिक्षा और संघर्ष
जमालुद्दीन की शिक्षा सिर्फ आठवीं कक्षा तक सीमित रही है, और उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि अगर उनकी शिक्षा बेहतर होती, तो शायद उनका कारोबार और भी आगे बढ़ सकता था.
वह बताते हैं कि कई बार अंग्रेजी के कारण उन्हें दिक्कतें हुईं, खासकर सरकारी कागजों में हस्ताक्षर करने में. हालांकि, इसके बावजूद उनकी कड़ी मेहनत और कला की शक्ति ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया.
उनके अनुसार, यदि वह अच्छे से पढ़े-लिखे होते, तो शायद भारत सरकार की ओर से हस्तशिल्पकारों को विदेश भेजने वाले संत कवीर अवार्डी जैसे अवसरों को वह बेहतर तरीके से ग्रहण कर पाते.
लेकिन उन्होंने इस मुश्किल को भी अपनी सफलता की राह में एक चुनौती के रूप में लिया, और खुद को साबित किया.
भविष्य की दिशा
जमालुद्दीन का अगला लक्ष्य अपने कारोबार को विदेशों तक पहुंचाना है. इसके लिए वह अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. उनका सपना है कि एक दिन उनके बनाए हस्तशिल्प का नाम सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सम्मानित हो.
और अंत में
जमालुद्दीन की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर आपके पास मेहनत, जुनून और सही दिशा हो, तो आप किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं. उनका जीवन एक उदाहरण है कि किस तरह से मेहनत, संघर्ष और आत्मविश्वास से किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है. अब उनका अगला कदम न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना है.