आत्मनिरीक्षण समाज के विकास के लिए आवश्यक : अजीत डोभाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 02-02-2025
Introspection is necessary for the development of society: Ajit Doval
Introspection is necessary for the development of society: Ajit Doval

 

आशा खोसा / नई दिल्ली

 राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने आज एक महत्वपूर्ण बयान में कहा कि राज्यों और समाजों के लिए आत्मनिरीक्षण हमेशा महत्वपूर्ण रहा है और यह किसी भी समाज के विकास के लिए आवश्यक है. उन्होंने यह टिप्पणी तुर्की-अमेरिकी विद्वान और लेखक प्रोफेसर अहमेत टी. कुरु की पुस्तक "इस्लाम ऑथॉरिटेरियनिज्म: अंडरडेवलपमेंट-ए ग्लोबल एंड हिस्टोरिकल कंपैरिजन" के हिंदी संस्करण के विमोचन के दौरान दी. यह पुस्तक खुसरो फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित की गई है.

 डोभाल ने पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि धर्म और राज्य के बीच संघर्ष एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. इसे सही दिशा में समाधान की ओर मोड़ने की आवश्यकता है.नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में खचाखच भरे हॉल में बोलते हुए डोभाल ने कहा, "राज्य और धर्म के बीच संघर्ष की घटना सिर्फ इस्लाम तक ही सीमित नहीं है.

हम इसे पूरे इतिहास में देख सकते हैं. लेकिन इस संघर्ष का समाधान केवल तभी संभव है जब हम अपने विचारों और दृष्टिकोण पर आत्मनिरीक्षण करें. यदि हम आत्मनिरीक्षण नहीं करेंगे तो हम समय और दिशा खो देंगे.  समय गवाह है कि जो पीढ़ियाँ नए विचारों को अपनाने में असफल रही हैं, वे स्थिर हो गईं और अंततः उनका पतन हुआ."

उन्होंने आगे कहा, "धर्म या राज्य के प्रति निष्ठा से समझौता नहीं किया जा सकता. हमें अपने दिमाग को कैद नहीं होने देना चाहिए. जब समय बर्बाद होता है, तो प्रगति और परिवर्तन में देरी होती है."डोभाल ने अपने भाषण में यह भी कहा कि धर्म और राज्य के बीच संघर्ष अपरिहार्य है क्योंकि सभी विचारधाराएँ प्रतिस्पर्धी हैं.

यदि वे प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी तो वे स्थिर हो जाएंगी और अंततः नष्ट हो जाएंगी. उन्होंने उदाहरण के तौर पर हिंदू धर्म का उल्लेख किया, जहां संघर्ष का समाधान शास्त्रार्थ और संवाद के माध्यम से किया गया था. उन्होंने यह बताया कि जब विचारों और धर्मों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है, तो वह समाज के विकास का हिस्सा बनता है.

डोभाल ने इतिहास से एक महत्वपूर्ण उदाहरण दिया, जब प्रिंटिंग प्रेस के आगमन के खिलाफ प्रतिरोध किया गया था. उन्होंने कहा, "प्रिंटिंग प्रेस के विरोध का उदाहरण हमें यह दिखाता है कि धार्मिक नेताओं ने इसे इस डर से खारिज किया कि इससे इस्लाम का सही अर्थ नहीं प्रस्तुत किया जाएगा." उनका कहना था कि समय के साथ, इस तरह के विरोध से बचना और विचारों के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देना जरूरी है.

इस अवसर पर पूर्व मंत्री, लेखक और पत्रकार एमजे अकबर ने भी अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को लोकतंत्र की बजाय ज्ञान आधारित समाज की ओर लौटने की आवश्यकता है, जैसा कि मुस्लिम साम्राज्यों के गौरवशाली काल में था.

अकबर ने कहा, "मुस्लिम साम्राज्यों का पतन इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने ज्ञान साझा करना बंद कर दिया." उन्होंने यह भी कहा कि सूफीवाद एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है, क्योंकि यह हमें शत्रुतापूर्ण रिश्तों के बजाय सह-अस्तित्व और समझ की ओर ले जाता है.

अकबर ने मुस्लिम समाज के लिए एक गंभीर संदेश देते हुए कहा कि उनकी असली समस्या आधुनिकता को स्वीकार करने और राष्ट्र-राज्य को समझने में असमर्थता है. साथ ही, उन्होंने डॉ. कुरु को सुझाव दिया कि वह पाकिस्तान पर विशेष ध्यान केंद्रित करें, जो एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे धर्म का उपयोग राष्ट्र को विभाजित करने और संघर्षों को बढ़ावा देने के लिए किया गया..

पुस्तक के लेखक डॉ. अहमेट टी. कुरु ने कहा कि मुसलमानों को अपने पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अपनी नागरिकता को स्वीकार करना चाहिए और अपने अधिकारों और कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों का पिछड़ापन लोकतंत्र में ही समाधान पा सकता है, जहां समान नागरिक अधिकार दिए जाएं और हर नागरिक को अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो.

डॉ. कुरु ने विशेष रूप से यह बात की कि मुस्लिम समाज ने तब अच्छा किया था जब उसने सह-अस्तित्व और विविधता को स्वीकार किया. उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम देशों को उन क्षेत्रों में बदलाव लाना चाहिए, जहां धर्म और राज्य के बीच घनिष्ठ गठजोड़ ने समाज की प्रगति को रोक दिया है.

इस अवसर पर खुसरो फाउंडेशन के संयोजक डॉ. हफीजुर रहमान ने भी अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि खुसरो फाउंडेशन किताबों के माध्यम से इस्लाम से जुड़ी झूठी कहानियों को चुनौती देने की दिशा में काम करता रहेगा. डॉ. रहमान ने यह भी बताया कि फाउंडेशन बच्चों के लिए किताबों की एक श्रृंखला लाने पर काम कर रहा है, जो इस्लाम और अन्य विषयों पर सही और समृद्ध जानकारी प्रदान करेगी.

यह कार्यक्रम न केवल किताब के विमोचन का अवसर था, बल्कि एक महत्वपूर्ण संवाद का भी हिस्सा था, जिसमें धर्म और राज्य के बीच संघर्ष के समाधान पर विचार किए गए. अजीत डोभाल, एमजे अकबर और डॉ. कुरु के विचारों ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी समाज यदि अपने विचारों पर आत्मनिरीक्षण नहीं करता और समय के साथ नहीं बदलता, तो वह पीछे रह जाता है.

धर्म और राज्य के बीच संघर्ष और विचारों की प्रतिस्पर्धा हमेशा एक चुनौती रहेगी, लेकिन इसका समाधान संवाद, खुलापन और विविधता को स्वीकार करने में है.