मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रेरणा: हिजाबी ट्रेकर हाइका अवती की साहसिक यात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-10-2024
An inspiration for Muslim women: Haika Awati's adventurous journey
An inspiration for Muslim women: Haika Awati's adventurous journey

 

भक्ति चालक

छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता के गवाह रहे किले आज भी राजाओं की जुझारूपन के गवाह हैं.महाराज के चरित्र का इतिहास और उनकी उपलब्धियों को जानने के लिए, कई लोग उनसे प्रेरणा लेने के लिए किलों के चारों ओर घूमते हैं.इसी प्रेरणा से शिव जन्मभूमि जुन्नार की बेटी हाइका अवती गडकिल्या पदयात्रा के जरिए समाज को कुछ संदेश देना चाहती हैं.    

'हिजाबी ट्रेकर' के रूप में उभर रही हाइका( Haaequa)ट्रैकिंग के जरिए अपनी एक अलग पहचान बना रही है.समृद्ध इतिहास वाले जुन्नार तालुका में जन्मी हाइका को बचपन से ही किलों का शौक था.उसे महाराज के वीरतापूर्ण इतिहास से अधिक स्नेह है.हाइका को अपने स्कूल के दिनों से ही आउटडोर खेलों में रुचि थी.वह कहती हैं, “शिव इतिहास से प्रेरणा लेकर वह बचपन से ही साहसी खेलों की ओर मुड़ गईं.

हाइका की घूमने की लालसा खेल के प्रति उसके जुनून के कारण शुरू हुई.हाइका नौ साल की उम्र से तायक्वोंडो का अभ्यास कर रही है. ब्लैक बेल्ट हासिल करने वाली जुन्नार तालुक की पहली मुस्लिम महिला बन गई.

हाइका को खेलने की प्रेरणा कैसे मिली ?  इस बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “शिव जन्मभूमि में पैदा होने के कारण मुझमें बचपन से ही साहसिक भावना रही है.चूंकि मेरा कोई भाई नहीं, इसलिए मुझ पर अपनी और अपनी बहनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी.इस लिहाज से, खेल के प्रति अपने प्यार के चलते मैंने आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा.उस प्यार से मुझे ट्रैकिंग का शौक पैदा हुआ.'

हिका अवती

खेल प्रेम के साथ ट्रैकिंग का शौक

हाइका का बचपन गाँव में बीता.पिता का छोटा सा सिलाई का व्यवसाय है.माँ स्कूल टीचर हैं.हाइका तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं.साधारण परिवार में जन्मी हाइका उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पुणे आ गईं.उनके समुदाय में खेल और ट्रैकिंग लोकप्रिय हैं.महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा दर कम है.ऐसे में उन्होंने खेल के प्रति अपने जुनून को बरकरार रखते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. 

हाइका को खेलने की प्रेरणा कैसे मिली ?  इस बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “शिव जन्मभूमि में पैदा होने के कारण मुझमें बचपन से साहसिक भावना रही है.मेरा कोई भाई नहीं इसलिए मुझ पर अपनी और अपनी बहनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी.इस लिहाज से, खेल के प्रति अपने प्यार के चलते मैंने आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा.उस प्यार से मुझे ट्रैकिंग का शौक पैदा हुआ.' 

वह गांव से पुणे आईं और आजम कैंपस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई पूरी की.इसके बाद इसी क्षेत्र में नौकरी जारी रखी.खेलों का शौक होने के कारण उन्होंने स्कूली बच्चों को खेलों का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.

वह अपनी नौकरी के साथ शनिवार और रविवार का समय घूमने-फिरने में लगाती.उन्होंने शिवजन्मस्थान किला शिवनेरी में महाराज को याद करके अपनी ट्रैकिंग यात्रा शुरू की.अब तक वह तोरणा, हरिश्चंद्रगढ़, कोरीगाड, कोकंदीवा, राजमाची, भुइकोट, समुद्री किले, पर्वतीय किले जैसी कई जगहों पर घूम-घूमकर जानकारी इकट्ठा कर चुकी हैं.उनके यात्रा व्लॉग यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर भी लोकप्रिय हैं.  

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें यह विचार कैसे आया, तो उन्होंने कहा, “मेरी मां एक शिक्षिका होने के नाते हमेशा नवोन्वेषी रहती हैं.वह सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी के बारे में बहुत कुछ जानती हैं.इसलिए उन्होंने मुझे चैनल शुरू करने का आइडिया दिया.' इसके बाद मैंने सोशल मीडिया पर 'हिजाबी ट्रेकर' नाम से अपना चैनल शुरू किया.'

'हिजाबी ट्रेकर' की यात्रा

हिजाबी अपने सोशल मीडिया के माध्यम से सह्याद्रि की सुंदरता दिखाने के -साथ महाराष्ट्र की संस्कृति, किलों द्वारा संरक्षित इतिहास को बताने की कोशिश करती है.एक ऊंचा किला या पहाड़ चुनें और जंगल से मेल खाने वाले कैजुअल कपड़ों के साथ उस पर एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक चढ़ें.

लेकिन जाति धर्म से परे आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए, हेका ने हिजाब पहनकर ट्रेकिंग करने का फैसला किया.वह न सिर्फ ट्रैकिंग कर रही, इसके जरिए समाज में महिलाओं के हिजाब पहनने को लेकर बनी गलत छवि को भी तोड़ रही हैं.

हालाँकि ज्ञानोदय के बाद कई समुदायों ने आधुनिक विचारों को अपनाया है.हाइका ने दिखाया कि धार्मिकता को बनाए रखते हुए आधुनिकता को कैसे अपनाया जा सकता है.हाइका से हिजाब पहनकर ट्रैकिंग के बारे में कई सवाल पूछे गए.हाइका कहती हैं, “जब मैंने 2019में उमरा और हज किया, तो मुझे हिजाब के लिए और अधिक सम्मान मिला.

तभी मुझे एहसास हुआ कि धर्म या संस्कृति कभी भी आपकी महत्वाकांक्षा के आड़े नहीं आती.हिजाब पहनकर भी हम अपने सपने पूरे कर सकते हैं. क्योंकि हिजाब अनिवार्य नहीं बल्कि पसंद का मामला है.”हाइका आगे कहती हैं, “हमारे समाज में कई लोग सोचते हैं कि धार्मिक होने का मतलब यह नहीं कि आप अपनी प्राथमिकताएँ नहीं रख सकते.

लेकिन मैं लोगों की इस ग़लतफ़हमी को तोड़ना चाहती था. इसलिए मैंने अपने धार्मिक रुझान और ट्रैकिंग शौक को अपने साथ ले जाने का फैसला किया और 'हिजाबी ट्रेकर' की अवधारणा का जन्म हुआ.हिजाबी ट्रेकर के लोगो के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, “हमारे तिरंगे के प्रति बहुत सम्मान है.यह प्रेरणा का स्थान है. तिरंगे के तीन रंगों से प्रेरित होकर, मैंने अपना हिज्बी ट्रेकर लोगो डिजाइन किया.

महिलाओं के लिए ट्रैकिंग की समूह अवधारणा

खेल के प्रति जुनून से लेकर ट्रैकिंग तक के अपने सफर के बारे में बात करते हुए हाइका कहती हैं, “मैं इसके जरिए खुद को साबित करने की कोशिश कर रही हूं.समाज को दिखा रही हैं कि मुस्लिम महिलाएं भी खेलों में आगे बढ़ रही हैं.आज मेरे सोशल मीडिया फॉलोअर्स मुझे हिजाबी ट्रेकर कहते हैं.हिजाबी ट्रेकर अब मेरी पहचान बन गई है.”

जब उनसे पूछा गया कि एक महिला के रूप में ट्रैकिंग के शुरुआती दिनों में उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, तो वह कहती हैं, “ट्रैकिंग के दौरान आपको ढीले लेकिन तंग कपड़े पहनने पड़ते हैं.लेकिन मैं पूरे शरीर को ढकने में सहज महसूस करता हूं.तो एक बात ने मुझे परेशान कर दिया, लेकिन सौभाग्य से केरल में कुछ कंपनियों ने ट्रैकिंग के दौरान इस्तेमाल होने वाले पूरे शरीर के कपड़ों का विपणन किया है.

इससे मेरी जैसी कई लड़कियों की समस्याएँ हल हो गईं.”वह आगे कहती हैं, ''मैं बहुत सी लड़कियों से मिली हूं जो ट्रैकिंग करना चाहती हैं.जब बात ट्रैकिंग की आती है तो कई लड़कियों के मन में जाने से लेकर रहने तक कई सवाल उठते हैं.

ट्रैकिंग के दौरान बच्चे भी आपके साथ होंगे?मुझे इस तरह की प्रतिक्रियाएं मिलीं. इसमें कोई बुराई नहीं है,लेकिन खासकर मुस्लिम परिवारों में ये बातें ज्यादा देखी जाती हैं.ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढते हुए मेरे मन में ख्याल आया कि हमें महिलाओं के लिए एक ऐसा ट्रैकिंग ग्रुप बनाना चाहिए.जिसके माध्यम से महिलाएं मानसिक शांति के साथ स्वतंत्र रूप से ट्रेकिंग कर सकती हैं.''

खुद को सही ठहराने के लिए वकालत की शिक्षा

शिक्षा विकास और सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है.दुर्भाग्य से भारत में मुसलमानों की शिक्षा का स्तर विशेषकर उच्च शिक्षा बहुत संतोषजनक नहीं है. हालाँकि शिक्षा के अभाव के कारण यह समाज कुछ हद तक पिछड़ा हुआ है, लेकिन आज इसमें कई सकारात्मक बदलाव होते दिख रहे हैं.

शिक्षा की कमी के कारण महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.इसलिए, हाइका ने शिक्षा के महत्व पर अपनी मजबूत राय व्यक्त की है.कहती हैं, ''मैंने 2017में शादी कर ली.'' उन्होंने आगे कहा, “महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाया जाना चाहिए.शादी के एक साल के भीतर ही मुझे अपने पति से अलग होना पड़ा.इसके बाद मुझे रिश्तेदारों और समाज के सवालों का सामना करना पड़ा.

इस जोड़े ने तलाक के लिए एक बड़ी अदालती लड़ाई की.वह लड़ाई अभी भी जारी है.मुझे एहसास हुआ कि कानून की जानकारी के बिना यह लड़ाई प्रभावी ढंग से नहीं लड़ी जा सकती.वह आगे कहती हैं, ''हमारे देश में महिलाओं के लिए कई कानून हैं.लेकिन मुझे नहीं पता था कि उन कानूनों का इस्तेमाल कैसे करना है. इसलिए मैंने अपनी लड़ाई प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया.''

हाइका अब पुणे के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई कर रही हैं.साथ ही वह अपने खेल और ट्रैकिंग के शौक को भी आगे बढ़ाना चाहती हैं.आर्थिक रूप से सक्षम होने के बाद हम महिलाओं के लिए एक ट्रैकिंग ग्रुप बनाना चाहते हैं. इसके साथ ही वह बुजुर्ग महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए एक फिटनेस ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू करना चाहती हैं.

अतः हाइका के उदाहरण से यह सीखना आवश्यक है कि महिलाओं के लिए सभी पहलुओं में सक्षम होना कितना महत्वपूर्ण है.समाज के दायरे से बाहर निकलकर जिद करके पढ़ाई और अपने शौक पूरे करने वाली हाइका सभी महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं.