ग्रेटा थनबर्ग को मात देती भारतीय मुस्लिम महिला environmentalist सुमैरा अब्दुल अली

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-03-2025
Indian Muslim woman environmentalist Sumaira Abdul Ali beats Greta Thunberg
Indian Muslim woman environmentalist Sumaira Abdul Ali beats Greta Thunberg

 

reshmaडॉ. रेशमा रहमान

आज भारत के लिये सबसे बड़ी चुनौती हैं.देर ही सही लेकिन अब इसपे बात हो रही है.यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है, ऐसे में 8साल की एक लड़की ग्रेटा थनबर्ग ने पूरी दुनिया में अपने भाषण से सनसनी पैदा कर दी थी. "हमारे घर में आग लग गई है.मैं यह कहने आई हूँ कि हमारे घर में आग लग गई है  (“Our house is on fire. I am here to say, our house is on fire”).

ग्रेटा थनबर्ग,एक स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जो विश्व के नेताओं को मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के साथ, तत्काल कार्रवाई करने की चुनौती देने के लिए जानी जाती हैं.ग्रेटा दुनिया के राजनेताओं को चुनौती देते हुए कहती हैं कि "हम अब सत्ता में बैठे लोगों को यह तय करने नहीं दे सकते कि राजनीतिक रूप से क्या संभव है.

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हम अब सत्ता में बैठे लोगों को यह तय करने नहीं दे सकते कि उम्मीद क्या है.उम्मीद निष्क्रिय नहीं है.उम्मीद बकवास नहीं है.उम्मीद सच बोलना है.उम्मीद कार्रवाई करना है.और उम्मीद हमेशा लोगों से आती हैं. 28 सितंबर, 2021को इटली के मिलान में ‘यूथ4 क्लाइमेट शिखर सम्मेलन’ में यह वायरल भाषण दी थी और दुनिया में जबरदस्त स्वागत हुआ था.

वह आगे कहती हैं “लेकिन अब उनके पास 30साल की बकवास है और इससे हमें क्या हासिल हुआ है? हम अभी भी इसे बदल सकते हैं - यह पूरी तरह से संभव है.इसके लिए तत्काल, भारी वार्षिक उत्सर्जन कटौती की आवश्यकता होगी.

लेकिन अगर चीजें आज की तरह चलती रहीं तो ऐसा नहीं होगा.हमारे नेताओं द्वारा जानबूझकर कार्रवाई न करना सभी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के साथ विश्वासघात है”. ग्रेटा थनबर्ग की ये ‘इमोशन और फायर’ से भरी बातों ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था”.

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वही,इसे दुनिया ना भूले कि ग्रेटा से कहीं ज्यादा पहले से एक लंबी लड़ाई लड़ती आई भारतीय महिला ने कई दशक माफियाओं के नाक में दम कर रखा था. यह भारत में जन्म लेने वाली एक ऐसी बहादुर मुस्लिम महिला जिसने पर्यावरण को बचाने के लिए तथा रेत माफिया के खिलाफ एक ऐसी जंग छेड़ दी जिसे इतिहास में याद रखा जाएगा.

लोगो ने कहा सुना था "रेत माफिया' जैसा शब्द.यह महिला कोई और नहीं “Sand शेरनी” सुमैरा अब्दुल अली हैं, जो अब 64साल की उम्र पार कर चुंकी है.यह मुंबई में रहती हैं.सुमैरा मुंबई की इन्वाइरन्मेन्टलिस्ट हैं और आवाज़ फाउंडेशन की संस्थापक हैं.

वह कन्वर्सेशन सब कमेटी की को-चेयरमैन और एशिया के सबसे पुराने व सबसे बड़े एनवायरोमेंटल एनजीओ, “द बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी” की सचिव भी हैं.फिलहाल वह गवर्निंग काउंसिल मेंबर हैं. सुमैरा भारत के सर्वोपरि पर्यावरणविद के रूप में अपनी खास पहचान रखती हैं.वह पिछले बीस साल से ध्वनि प्रदूषण और अवैध रेत खनन के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं.

साल 2002में सुमैरा के नेतृत्व में आवाज़ फाउंडेशन द्वारा ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चलाई गई थी, जिसे लोगों का व्यापक सर्पोट मिला था.धीरे-धीरे यह मुहिम भारत के कई राज्यों तक फैलनी शुरु हो गई.जैसे- बनारस, बैंगलोर और पुणे.आवाज़ भारत की पहली ऐसी संस्था है, जो ध्वनि प्रदूषण का डाटा इकट्ठा करती है.

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वरिष्ठ भारतीय पत्रकार नवीन कुमार कहते हैं "दुनिया में जितनी खराब चीजें हैं वह मर्दों की वजह से हैं.युद्ध, अशांति, गंदी हवा, नफरत और इस दुनिया में जितनी अच्छी चीजें हैं जैसे साफ पानी, हरियाली, प्रेम, जिंदा रहने की तलब,इसके लिए सिर्फ और सिर्फ औरतें हैं."

आज पर्यावरण का हाल देखकर पत्रकार नवीन कुमार का बयान सही बैठता है.वही चंद मुट्ठी भर औरतों ने समझा कि दुनिया को बचाना है तो पर्यावरण को बचाना पड़ेगा. इस चीज़ के लिए दुनिया के जिस कोने में रहती है,वही से अपनी आवाज़ उठा रही है.जिस मुद्दे को पूरी दुनिया के सरकार ने महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में नहीं लिया है.

वही जेन गुडॉल, सिल्विया अर्ले, वांगारी मथाई, राचेल कार्सन, वंदना शिवा, इसाटौ सीसे, मे बोएव, मरीना सिल्वा, मेधा पाटकर, सुनीता नारायण, राधा भट्ट, मेनका गांधी, ग्रेथा थनबर्ग, सुमैरा अब्दुल अली जैसे अहम नाम है, जिनका जज़्बा, सजगता, भागीदारी और निडरता दुनिया में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने वाले जिम्मेदार ठेकेदारों में हलचल पैदा करती है.

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जब सुमैरा ने साल 2002में मध्यरात्रि से बॉम्बे पर्यावरणीय एक्शन ग्रुप और दो डॉक्टरों के साथ लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति देने के लिए शोर नियमों के ढील के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी.तब सिस्टम के साथ लोगो में एक साइलेंट बेचैनी देखी गई, क्योंकि सोते हुए समाज पर हथोड़ा मारने जैसा था.

लोगो को आजकल हर छोटी-मोटी बात पर भावनाएँ आहत होने का खतरा अलग मंडराता रहता है.सिस्टम के साथ लोगों को जगाने का काम कत्तई आसान नहीं रहा होगा.इसलिए, सुमैरा अब्दुल अली को सरकारी अधिकारियों और प्रेस द्वारा भारतीय 'शोर मंत्री (Minister of Noise)' ख़िताब मिला है.

साल 2003 में, सुमैरा ने बॉम्बे एनवायरनमेंट एक्शन ग्रुप, डॉ यशवंत ओके और डॉ प्रभाकर राव के साथ मिलकर बॉम्बे हाईकोर्ट में क्षेत्रों के सीमांकन की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की.सात साल बाद, वर्ष 2009 में मेहनत रंग लाई.

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बृहन्मुंबई नगर निगम को अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, अदालतों और धार्मिक संस्थानों के आसपास 100मीटर तक फैले 2,237मौन क्षेत्रों का सीमांकन करने का निर्देश दिया. महाराष्ट्र सरकार ने 2015 में एक परिपत्र जारी कर पूरे महाराष्ट्र में वाणिज्यिक वाहनों के पीछे 'हॉर्न ओके प्लीज' चिन्ह के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इस आधार पर कि यह मोटर चालकों को अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाने के लिए प्रोत्साहित करता है और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देता है.इसके अलावा ,उन्होंने साल 2004और साल 2006में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ एक व्यापक सेमिनार का आयोजन किया था.

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साल 2003के बाद से ही वे ध्वनि प्रदूषण, अवैध रेत खनन, अवैध निर्माण, जैव विविध वनों में खनन, समुद्री प्रदूषण और तेल फैलने, पर्यावरण के अनुकूल त्योहारों, पेड़ों की सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर ‘आवाज़ फाउंडेशन’ के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से काम किया है.

साथ ही,बच्चों के तंबाकू बिक्री पर कानून जैसे नागरिक मुद्दों, जनहित के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए एक एनजीओ आंदोलन का आयोजन जिसका नाम ‘मूवमेंट अगेंस्ट इंटिमिडेशन, थ्रेट एंड रिवेंज अगेनिस्ट एक्टिविस्ट'(MITRA) है. उन्होंने अलग-अलग प्लेटफार्म के माध्यम से लोगों को पर्यावरण से होने वाले नुकसान से न सिर्फ अवगत कराया है, बल्कि उनसे बचने के तरीकों से भी अवगत कराया है.

अपने काम को बड़े पैमाने पर जनता से जोड़ने के लिए मीडिया और फिल्मों का अहम योगदान देखा गया है.इस बात को ध्यान में रखते हुए सुमैरा ने कई सारी डॉक्युमेंट्री फिल्मों में भाग लिया जो सीधे तौर पर उनके मुहीम से जुड़ी हुई है,जिनमे लाइन इन द सैंड, सैंड वॉर्स, इज गॉड डेफ, जरा सुनिए तो जैसे अहम डॉक्यू फिल्में हैं.

ध्वनि प्रदूषण, रेत खनन, सार्वजनिक स्थान पर लाउडस्पीकर, रेत माफिया पर ज़ोरदार हमला और पर्यावरण जैसे मुद्दो पर जान हथेली पर रख कर बहादुरी से लड़ती है.इसके लिए इन्हें मदर टेरेसा और अशोका फेलो जैसे सम्मानित पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका हैं.ऐसी बहादुर महिला को देश, समाज और पर्यावरण को भी ज़रूरत है जो मिटाने के लिए नहीं, बल्कि बचाने के लिए जंग लड़ती है.

(लेखिका सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता, यूएसटीएम)