आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली / श्रीनगर
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत लेकिन उस दिन भयावह बने पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. इस कायराना हमले में अब तक 27 निर्दोष पर्यटकों की जान जा चुकी है और दर्जनों घायल हैं.
लेकिन इस अंधेरे के बीच एक नाम ऐसा भी है जो उम्मीद और इंसानियत की रोशनी की तरह सामने आया—नजाकत अली, एक स्थानीय कपड़ा व्यापारी, जिन्होंने सूझबूझ और साहस का परिचय देते हुए 11 लोगों की जान बचा ली.
हमले के वक्त छत्तीसगढ़ के चिरमिरी से आए चार दोस्त—कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन, हैप्पी बधावान और अरविंद्र अग्रवाल—अपनी-अपनी फैमिलियों के साथ पहलगाम के बैसरन घाटी में घूमने आए थे.
अचानक हुए फायरिंग के बीच अफरा-तफरी मच गई। सड़क के दोनों ओर भारी संख्या में फंसे पर्यटक जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. इसी दौरान नजाकत अली ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए अपने परिचित पर्यटकों को संभाला और सुरक्षित स्थान पर ले गए.
नजाकत अली हर साल सर्दियों में कपड़े बेचने चिरमिरी आते हैं, और वहीं इन परिवारों से उनकी जान-पहचान हो गई थी. यही भरोसा उनके साथ पहलगाम तक लाया था. जिस वक्त हमले की खबर से सारा देश कांप उठा, उस वक्त बीजेपी की पार्षद पूर्वा स्थापक भी वहां मौजूद थीं—जो कुलदीप स्थापक की पत्नी हैं. उनके तीन छोटे बच्चे भी उसी समय घटनास्थल पर थे.
जहां हर कोई अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में था, नजाकत अली ने धैर्य और विवेक का परिचय दिया. उन्होंने सभी 11 पर्यटकों को एक-एक कर सड़क से हटाकर लॉज की ओर सुरक्षित पहुंचाया. यही नहीं, हमले के तुरंत बाद वे सभी को सेना की मदद से होटल तक पहुंचाने में भी सफल रहे.
कुलदीप स्थापक के मामा राकेश परासर ने मीडिया से बातचीत में बताया, "हमले के वक्त परिवार में तीन बच्चे भी थे.
हम बेहद घबराए हुए थे, लेकिन नजाकत ने सभी को सुरक्षित निकाला. हम उनके आभारी हैं." शिवांश जैन की मां ने भी बताया कि "हमारा बेटा, बहू और पोता सुरक्षित हैं। नजाकत नहीं होते तो क्या होता, सोचकर भी डर लगता है."
एक ओर जहां हमले को लेकर कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की, वहीं नजाकत अली की बहादुरी ने यह स्पष्ट कर दिया कि धर्म नहीं, इंसानियत सबसे ऊपर है. कश्मीरी मुस्लिम व्यापारी द्वारा हिंदू परिवारों की जान बचाना यह साबित करता है कि कश्मीरियत और इंसानियत अब भी जिंदा है.