फजल पठान
कहते हैं कि कला इंसान को कभी भूखा नहीं रखती. आज तक कई लोगों ने कला के माध्यम से अपना करियर संवारा है. अपनी रुचि और शौक़ को अपनाकर कई लोग सफल हुए हैं. ऐसे ही एक नाम है सोलापुर की हाफिजा अंसारी का, जिन्होंने अपनी कला के ज़रिए कई लड़कियों और महिलाओं की ज़िंदगी में रंग भरे हैं. हाफिजा अंसारी ने अपनी कला से अपनी अलग पहचान बनाई है। ये कहानी है उनके इसी प्रेरणादायक सफर की.गरीब महिलाओं के सपनों को पूरा करने का इरादा
"गरीबी की वजह से कई महिलाओं के सपने अधूरे रह जाते हैं. मैं उन महिलाओं के लिए काम करना चाहती हूं.” यह कहना है हाफिजा अंसारी का, जो मूल रूप से सोलापुर की रहने वाली हैं. हाफिजा को बचपन से ही चित्रकला और आर्टवर्क का शौक था. उन्होंने इस शौक को न केवल ज़िंदा रखा, बल्कि इसे अपने करियर के रूप में अपनाया.
शौक को करियर के रूप में चुनना आसान नहीं होता, लेकिन अगर परिवार से सहयोग मिले, तो रास्ता आसान हो जाता है। अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में हाफिजा कहती हैं,
"हमारा एक छोटा सा परिवार है – मां, पिता, भाई और बहन। हम एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. हमारे खानदान में ज़्यादातर लोग पढ़े-लिखे हैं. अधिकतर सदस्य डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक हैं."
शुरुआत से ही कला के प्रति झुकाव
हाफिजा आगे कहती हैं,"प्राथमिक शिक्षा के दौरान स्कूल में कई विषय सिखाए जाते थे. बाकी बच्चों की तरह मुझे भी बचपन से ही चित्र बनाने का शौक था। मैं तब से ही ड्रॉइंग कर रही थी.
आठवीं कक्षा में मैंने एक चित्रकला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था, जिसमें मुझे पुरस्कार मिला था. उस प्रतियोगिता में मुझे सर्टिफिकेट और ट्रॉफी मिली थी। तभी से मेरे अंदर कला के प्रति खास लगाव पैदा हुआ."
शिक्षा और करियर
सोलापुर में प्रारंभिक शिक्षा के दौरान हाफिजा ने चित्रकला को शौक के रूप में अपनाया. हालांकि, उस वक्त उन्होंने यह नहीं सोचा था कि इसे करियर के रूप में अपनाएंगी. हाफिजा कहती हैं,
"जब मुझे पहली बार पुरस्कार मिला, तो मुझे अपनी कला पर गर्व महसूस हुआ. मैं पढ़ाई में भी अच्छी थी. घर में ज़्यादातर लोग डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक थे, लेकिन मुझे वही रास्ता अपनाना पसंद नहीं था.
इसलिए मैंने आर्टवर्क और चित्रकला की विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया. इनमें भी मुझे लगातार पुरस्कार मिलते रहे। पढ़ाई में अच्छी होने के बावजूद मैंने दसवीं के बाद आर्ट्स में एडमिशन लिया."
हाफिजा आगे कहती हैं,"मेरे इस फैसले का परिवार ने कभी विरोध नहीं किया. मुझ पर डॉक्टर या इंजीनियर बनने का कोई दबाव नहीं था. घरवालों ने मुझे अपनी पसंद के मुताबिक शिक्षा और करियर चुनने की पूरी आज़ादी दी."
कला को करियर बनाने का फैसला
करियर के रूप में इस क्षेत्र को अपनाने के फैसले के बारे में हाफिजा कहती हैं,"मैं कुछ अलग करना चाहती थी। डिज़ाइनिंग और आर्टवर्क में मेरी रुचि थी. इसलिए मैंने इसे ही करियर के रूप में अपनाने का फैसला किया. परिवार से मुझे हर कदम पर समर्थन मिला। शादी के बाद भी ससुराल से मुझे पूरा सहयोग मिला."
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद हाफिजा ने A.T.D. और J.D. Art की पढ़ाई पूरी की. ये दोनों कोर्सेज़ चित्रकला, आर्टवर्क और डिज़ाइनिंग से जुड़े हुए हैं. इन कोर्सेज़ को पूरा करने के बाद हाफिजा को स्कूल या कॉलेज में कला शिक्षक के रूप में काम करने का अवसर मिल सकता था.
हाफिजा के कारण सैकड़ों महिलाओं को मिला रोजगार
शिक्षा पूरी करने के बाद हाफिजा ने सोलापुर में काम शुरू किया. उन्होंने मेहंदी से लेकर आर्टवर्क तक के ऑर्डर लेना शुरू किया. यहीं से उनके व्यवसाय की शुरुआत हुई, लेकिन हाफिजा यहीं नहीं रुकीं – उन्होंने अपनी कला को दूसरों तक पहुंचाने का फैसला किया.
हाफिजा ने सोलापुर की सैकड़ों महिलाओं को आर्टवर्क की ट्रेनिंग दी. इससे न सिर्फ महिलाओं को कला का ज्ञान मिला, बल्कि उन्हें रोजगार के अवसर भी मिले.
महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का विचार कैसे आया?
महिलाओं को कला सिखाने और उन्हें स्वावलंबी बनाने के विचार के बारे में हाफिजा कहती हैं,"मेरे घर का माहौल अच्छा था, इसलिए मुझे हर तरह का सहयोग मिला.
लेकिन स्कूल और कॉलेज में मैंने देखा कि कई लड़कियां आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती थीं. घरेलू समस्याओं और आर्थिक स्थिति के चलते वे अपने सपनों से दूर हो जाती थीं। यह देखकर मुझे बहुत दुख होता था."
हाफिजा आगे कहती हैं,"आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होने की वजह से महिलाओं को कई बार अपमान सहना पड़ता है.
इसलिए मैंने पढ़ाई पूरी करने के बाद महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का फैसला किया. मैंने सोलापुर की महिलाओं को आर्टवर्क सिखाया – मेहंदी से लेकर विभिन्न आर्टवर्क तक. इस कला से उन्हें रोजगार मिला और वे आत्मनिर्भर बनीं. इससे मुझे सुकून और खुशी मिलती है."
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प
हाफिजा सोलापुर की लड़कियों और महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं। वह 15दिनों के कोर्स कराती हैं, जिसकी फीस मात्र 200रुपये होती है. हाफिजा कहती हैं,"गरीबी की वजह से लड़कियां पीछे न रह जाएं, यही मेरी कोशिश है.
इसलिए मैंने कोर्स की फीस बहुत कम रखी है. इस ट्रेनिंग में मैं उन्हें बेसिक से लेकर एडवांस लेवल तक का आर्टवर्क सिखाती हूं. पिछले 8-10साल से मैं यह काम कर रही हूं। साथ ही, मैं उन्हें ऑर्डर भी दिलवाती हूं."
हाफिजा विभिन्न वेस्ट मटीरियल से खूबसूरत चीज़ें बनाती हैं, जिनमें पोर्ट्रेट कैलेंडर, पेंटिंग, मेहंदी, वेडिंग बुकलेट, मंडला आर्ट, क्राफ्टवर्क, मिररवर्क और अन्य आर्टवर्क शामिल हैं.
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
हाफिजा कहती हैं,"मेरी कला की वजह से लोग मुझे पहचानने लगे हैं. आने वाले समय में मैं और भी महिलाओं के लिए काम करना चाहती हूं. महिलाएं आत्मनिर्भर बनें, अपने पैरों पर खड़ी हों और अपनी पहचान बनाएं – यही मेरी कोशिश है."
हाफिजा ने अपने शौक को सफल करियर और व्यवसाय में बदला। उनका आत्मविश्वास और लगन काबिले तारीफ है, लेकिन इससे भी प्रेरणादायक है – महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का उनका जुनून!
हाफिजा की इस जिद और संघर्ष को ‘आवाज़ मराठी’ का सलाम!