एहसान फाजिली/ श्रीनगर
कश्मीरी भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए नामित किया जाना किसी भी लेखक के लिए गर्व की बात होती है, और जब यह सम्मान किसी ऐसे लेखक को मिलता है जिसने भाषाओं की सीमाओं को पार किया हो, तो यह और भी खास बन जाता है.
गुलाम नबी पंडित, जिन्हें साहित्यिक जगत में गुलाम नबी आताश के नाम से जाना जाता है, ने इस वर्ष साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 अपने नाम किया. उन्हें यह सम्मान प्रसिद्ध तमिल लेखक जयकांतन के उपन्यास "ओरु मणिधन ओरु वीदु ओरु उलगाम" के कश्मीरी अनुवाद "अख इंसान, अख घरे, अख दुनिया" के लिए दिया गया.
यह उपन्यास दक्षिण भारत के गरीब तबके के जीवन और उनकी सामाजिक-धार्मिक परिस्थितियों को उजागर करता है. इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद 2020 में प्रकाशित हुआ था.
जयकांतन, जिन्हें 2002 में ज्ञानपीठ और 2009 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, ने अपने साहित्य में दक्षिण भारत के दलित समुदाय और गरीब तबके के संघर्ष को प्रमुखता से प्रस्तुत किया.
गुलाम नबी आताश ने इस उपन्यास को कश्मीरी भाषा में अनुवादित करके दक्षिण और उत्तर भारत के बीच एक साहित्यिक पुल का निर्माण किया है. अनुवाद के माध्यम से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है.
गुलाम नबी आताश (जन्म: 27 अप्रैल, 1949) पिछले पाँच दशकों से उर्दू और कश्मीरी साहित्य में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं. यह पहला मौका नहीं है जब उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
2008 में उन्हें कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था, जबकि 2011 में बाल साहित्य के क्षेत्र में बाल साहित्य पुरस्कार (साहित्य अकादमी) से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्हें 1981 में अंतरराष्ट्रीय सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था.
आताश को पहली बार 1979 में जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी से उनके कश्मीरी कविता संग्रह "ज़ूल अमरां हुंड" के लिए सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार मिला था. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कम से कम 19 प्रमुख पुरस्कार और कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं.
गुलाम नबी आताश ने अब तक 80 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित की हैं, जिनमें कविता संग्रह, शोध और आलोचना, लोकगीत, बाल साहित्य, अनुवाद और मोनोग्राफ शामिल हैं। इनमें 14 कश्मीरी लोकगीत और 13 बाल साहित्य की पुस्तकें प्रमुख हैं.
उनकी विशेष कृतियों में कश्मीर पर विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तांतों का अनुवाद भी शामिल है. उनकी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें "कश्मीर ग़ैर मुल्की सायाहूं के सफ़र नामों में" और "कश्मीर की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" इस विषय पर महत्वपूर्ण अध्ययन मानी जाती हैं.
बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य के बावजूद, आताश की साहित्यिक गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई है. उनके पास अब भी 10 अप्रकाशित कृतियाँ हैं, जिनमें दो उर्दू और आठ कश्मीरी भाषा में हैं.
गुलाम नबी आताश न केवल एक लेखक बल्कि एक समर्पित शिक्षक भी रहे हैं. उन्होंने जम्मू-कश्मीर सरकार के शिक्षा विभाग में बतौर शिक्षक कार्य किया और 2007 में लेक्चरर (+2 कश्मीरी) के रूप में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से एम.ए. (कश्मीरी) और बी.एड. किया तथा उर्दू और कश्मीरी में ऑनर्स डिग्री प्राप्त की.
तीन दशकों से अधिक के शिक्षण अनुभव के दौरान, उन्होंने जोनल समन्वयक (SSA), जिला समन्वयक (सांस्कृतिक शिक्षा विंग), और शिक्षक प्रशिक्षक/संसाधन व्यक्ति के रूप में कार्य किया। उन्होंने कई पीएचडी विद्वानों और शोधकर्ताओं को उनके शोध कार्य में सहायता भी प्रदान की.
गुलाम नबी आताश ने प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक कश्मीरी भाषा के पाठ्यक्रमों के निर्माण और पाठ्यपुस्तकों के संकलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन की विशेषज्ञ समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया और उर्दू पाठ्य पुस्तकों की संशोधन समिति में भी योगदान दिया.
इसके अलावा, उन्होंने कई लेख, फीचर और वार्ताएँ लिखी हैं, जो समय-समय पर प्रकाशित और प्रसारित होती रही हैं. उन्होंने अनेक पुस्तकों का मूल्यांकन किया है और राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर की पुरस्कार समितियों के जूरी सदस्य के रूप में भी कार्य किया है.
गुलाम नबी आताश की साहित्यिक यात्रा केवल लेखन और अनुवाद तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान दिया है. उनके कार्यों ने न केवल कश्मीरी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य भी किया.
आज, वे साहित्य के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं, जिनकी साहित्यिक विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर के रूप में हमेशा जीवित रहेगी.