दृढ़ता का नाम गौस शेख : दिव्यांगता को मात देकर बनाई नई पहचान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-01-2025
Gaus Sheikh is a name of perseverance: Created a new identity by overcoming disability
Gaus Sheikh is a name of perseverance: Created a new identity by overcoming disability

 

-भक्ति चालक 
 
दिव्यांग का मतलब उन्हें अलग नजर से देखना होता है. विकलांगता शरीर से आती है, इसलिए अगर ऐसे व्यक्ति आत्मविश्वास से भरे हों, उन्हें सहारा दिया जाए तो यह विकलांगता मानसिक स्तर तक नहीं पहुंच पाती. विकलांग लोग जिद्दी पंखों से आसमान पर कब्ज़ा करने के सपने से लड़ने की कोशिश करते हैं. लातूर के गौस शेख की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. 

महापुर लातूर शहर के पास एक गौसाच गांव है. पिता एक आश्रम स्कूल में नौकर हैं, माँ  गृहिणी हैं. गौस अपने माता-पिता की पहली संतान हैं. उनका जन्म दोनों हाथों के बिना हुआ, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें वैसे ही स्वीकार किया और अल्लाह का उपहार समझकर प्यार से उनका पालन-पोषण किया. गौस के पिता ने एक स्कूल में भर्ती कराया जहाँ वह कार्यरत था. 

गौस की कक्षा के अन्य बच्चे हाथ से लिखते थे, लेकिन गौस ऐसा नहीं कर सकते थे, इसलिए उनके माता-पिता और शिक्षकों ने उन्हें पैर के अंगूठे में पेंसिल रखकर लिखना सिखाया. जबकि गौस लिखने में माहिर हो गए , उनकी लिखावट से किसी को भी ईर्ष्या होती.

वह न सिर्फ लिखने में बल्कि पढ़ाई में भी मेधावी हैं.  कक्षा में प्रथम आने की निरंतरता बरकरार रखी है. उन्होंने 10वीं में 89 फीसदी और 12वीं में साइंस में 78 फीसदी अंक हासिल किए. वर्तमान में वह स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, लातूर में कला में प्रथम वर्ष की परीक्षा दे रहे हैं.

विकलांग छात्रों को पेपर हल करने के लिए आधा घंटा अधिक समय दिया जाता है, लेकिन गौस ने कभी यह रियायत नहीं ली. इसके विपरीत, उन्होंने अतिरिक्त सामग्री लेकर अन्य छात्रों की तरह केवल तीन घंटे में पेपर हल किया. गौस का सपना चार्टर्ड अधिकारी बनने का है.  इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है. इसके लिए वह कड़ी मेहनत भी कर रहे हैं. 

माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए गौस कहते हैं, ''जो लोग माता-पिता के परिश्रम से अवगत हैं, उनके कदम यदि भटकते नहीं हैं, तो वे हमें सही दिशा में ले जाते हैं. अपने माता-पिता को दुःख मत पहुँचाओ जो स्वयं गर्मी और बारिश सहकर तुम्हें आश्रय देते हैं.” 

इस बारे में बात करते हुए गौस ने कहा, ''चूंकि मेरे हाथ नहीं हैं, इसलिए माता-पिता मुझे नहलाने और खाना खिलाने का काम करते हैं. हालाँकि, मैं जितना संभव हो उतना काम खुद करता हूँ. जो खाना चम्मच से खाया जा सकता है, मैं खुद पैरों से खाता हूं.

मोबाइल भी पैरों से चलाया जाता है. मुझे हाथ न होने का कोई मलाल नहीं. मैं 10वीं और 12वीं में अच्छे अंकों के साथ दिव्यांग वर्ग में स्कूल में प्रथम स्थान पर रहा. अब मेरा लक्ष्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर एक अधिकारी बनना है.”

गौस रोने वालों में से नहीं. वह यह सोच कर आगे बढ़ रहा है कि  जिंदगी में कुछ करना है. इस बारे में विस्तार से बताते हुए वह कहते हैं, ''मैं इसलिए नहीं रो रहा हूं क्योंकि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं. पैर की उंगलियों से लिखने का अभ्यास किया.

मेरे परिवार और शिक्षकों ने मुझे इसके लिए प्रोत्साहित किया.' अभ्यास की निरंतरता के कारण मैंने पैर के अंगूठे में पेन पकड़कर लिखना शुरू कर दिया. मेरे टेढ़े-मेढ़े अक्षर देखकर अध्यापक ने मुझे चित्र बनाने की सलाह दी. इसलिए अपने खाली समय में मैंने अपने पैर के अंगूठे में ब्रश लेकर चित्र बनाना शुरू कर दिया. आज मैं चित्र भी बना सकता हूँ. भले ही मेरे हाथ नहीं , फिर भी मैं अपने पैरों का उपयोग करके क्रिकेट खेल सकता हूं.

कार्यक्षेत्र चाहे कोई भी हो, सफलता के शिखर पर पहुंचने वाले व्यक्ति की मेहनत और परिश्रम की कहानी सबके सामने होती है. गौस ने दिखाया है कि सफलता का रास्ता कड़ी मेहनत से होकर गुजरता है. यही कारण है कि उन्होंने समाज के समक्ष एक आदर्श स्थापित किया है.