गुवाहाटी से न्यू जर्सी तक: राहुल इस्लाम की अवसाद पहचानने वाली तकनीक ने जीता दिल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-10-2024
From Guwahati to New Jersey: Rahul Islam's depression detection technology wins hearts
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अरिफुल इस्लाम/गुवाहाटी
 
पूजा के बीच एक खुशखबरी असम से आई है. असम के युवा राहुल इस्लाम, जो वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में शोध कर रहे हैं, ने एक अभूतपूर्व तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. यह तकनीक दुनिया भर में अवसादग्रस्त लोगों की पहचान करने में मदद करती है और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ा कदम मानी जा रही है.

राहुल इस्लाम का सफर: असम से अमेरिका तक

राहुल इस्लाम का जन्म और पालन-पोषण असम के कामरूप जिले के बैहाटा चारियाली के कर्रा क्षेत्र के राधाकुची गांव में हुआ. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत के विभिन्न केंद्रीय विद्यालयों से प्राप्त की. उनके पिता गोलमहमूद अली केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में जवान थे. अपने पिता के तबादलों के कारण राहुल को विभिन्न स्थानों पर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी.

राहुल ने अपनी मैट्रिक और उच्चतर माध्यमिक परीक्षा दीमापुर केंद्रीय विद्यालय से उत्तीर्ण की.राहुल इस्लाम ने 2010 में हाई स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट परीक्षा में 97% अंक प्राप्त करके नॉर्थ ईस्ट में टॉप किया, जिससे उनकी प्रतिभा और कड़ी मेहनत का पता चलता है. इसके बाद उन्होंने गुवाहाटी में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की.

उच्च शिक्षा के लिए राहुल ने संयुक्त राज्य अमेरिका का रुख किया, जहां उन्हें स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यू जर्सी में छात्रवृत्ति प्राप्त हुई. आज राहुल, इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर सांग वोन बे के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण शोध परियोजना का हिस्सा हैं.

अवसाद की पहचान करने वाली तकनीक

राहुल इस्लाम का शोध मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी खोज का हिस्सा है. स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने एक मोबाइल ऐप विकसित किया है, जो किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति की पहचान कर सकता है.

इस ऐप की मदद से अवसाद से पीड़ित लोगों का पता लगाया जा सकता है. यह ऐप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की सहायता से काम करता है और व्यक्ति के चेहरे और आंखों को स्कैन करके उसकी मानसिक स्थिति का विश्लेषण करता है.

इस तकनीक के तहत दो प्रमुख ऐप विकसित किए गए हैं. पहला ऐप आंखों की पुतलियों के आकार और उसमें होने वाले बदलावों के आधार पर व्यक्ति के अवसादग्रस्त होने की संभावना का विश्लेषण करता है. दूसरा ऐप, जिसे "फेसप्सी" कहा जाता है, चेहरे की मांसपेशियों की गति और मस्तिष्क की मुद्रा में परिवर्तन का अध्ययन करके व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति की पहचान करता है.

इस खोज का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि अवसाद को दुनिया भर में एक मूक हत्यारा और मानसिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरे के रूप में देखा जाता है. ऐसे लोगों की शुरुआती चरण में पहचान करना बेहद कठिन होता है, क्योंकि अवसादग्रस्त लोग अक्सर अपनी भावनाओं को छिपाते हैं और उनके चेहरे पर उनकी मानसिक स्थिति का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता.

परिवार का गर्व

आवाज़-द वॉयस के साथ एक इंटरव्यू में राहुल के पिता गोलमहमूद अली ने बताया कि राहुल बचपन से ही पढ़ाई के प्रति बेहद जुनूनी थे. वे अपना ज्यादातर समय किताबों में डूबे रहते थे. गोलमहमूद ने गर्व से कहा, "मैं आज एक पिता के रूप में बेहद खुश और गौरवान्वित हूं. राहुल हर साल छुट्टियों में घर आता है और दिसंबर-जनवरी में अमेरिका लौट जाता है. मेरी एक बेटी भी है, राहुल मेरा बड़ा बेटा है और बेटी छोटी है."

राहुल के इस उल्लेखनीय शोध ने पूरे असम को गर्व से भर दिया है. असम के लोग इस युवा की सफलता से उत्साहित हैं, जिसने राज्य का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है.

अवसाद की पहचान में तकनीक की भूमिका

अवसाद को वर्तमान समय में मानव समाज के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में देखा जा रहा है. दुनिया भर में लाखों लोग इस मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, लेकिन इसकी पहचान और उपचार अक्सर देर से होते हैं. इस समस्या का समाधान निकालने के लिए स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का विकास किया है, जो प्रारंभिक चरण में ही अवसाद का पता लगा सकती है.

यह तकनीक न केवल चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति लाएगी, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों के नजरिए को भी बदलने में मदद करेगी. इससे उन लोगों की पहचान करना आसान हो जाएगा, जो अपनी मानसिक स्थिति को छिपाते हैं और मदद नहीं मांगते.

राहुल इस्लाम की यह उपलब्धि न केवल असम के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में अगर मेहनत और दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी व्यक्ति असाधारण ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है. राहुल की इस खोज से मानव समाज को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद है, जहां मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को समय पर पहचाना और उनका उपचार किया जा सकेगा.