आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली/श्रीनगर
कचरे का सही प्रबंधन न केवल पर्यावरण को सुधारने का एक तरीका है, बल्कि यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है.इस सच्चाई को महसूस कर कचरे को धन में बदलने का एक अनोखा प्रयास जम्मू और कश्मीर के एक पेशेवर वकील और पूर्व सरपंच, फारूक अहमद गनई ने किया है.
उन्हें लोग 'कचरा उठाने वाले' के नाम से भी जानते हैं, लेकिन उनके लिए कचरा केवल गंदगी नहीं, बल्कि एक अमूल्य संसाधन है, जिसे सही तरीके से उपयोग करके हरियाली, साफ-सफाई और धन का सृजन किया जा सकता है.
फारूक का कहना है कि कचरा न केवल हमारे वातावरण को गंदा करता है,यदि इसे सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो यह हमारे लिए लाभकारी भी हो सकता है.उनका यह विश्वास अब एक सशक्त आंदोलन में बदल चुका है, जिसे वे 'शांत क्रांति' के रूप में चला रहे हैं.
कचरे को धन में बदलने की शुरुआत
फारूक अहमद गनई ने जब अपने गांव सादिवारा (अनंतनाग जिला) में सरपंच का पदभार संभाला, तो उन्होंने एक अभिनव पहल शुरू की थी जिसका नाम था 'मुझे कचरा दो, मैं तुम्हें सोने के सिक्के दूंगा'.इस पहल का उद्देश्य यह था कि वे लोगों को यह समझा सकें कि कचरा केवल गंदगी नहीं, बल्कि यदि इसका सही तरीके से प्रबंधन किया जाए तो यह हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है.
इस पहल के माध्यम से उन्होंने अपने गांववासियों को यह बताया कि कचरा हमारे जीवन का हिस्सा है, लेकिन यह हमारी स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है.कचरे के प्रबंधन का सही तरीका अपनाकर हम न सिर्फ अपने गांव को साफ रख सकते हैं, बल्कि इसे एक संसाधन के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
कचरे के प्रबंधन का सही तरीका
फारूक का कहना है कि कचरे को सही तरीके से प्रबंधित करना बहुत आवश्यक है.इसके लिए उन्होंने कचरे को दो मुख्य श्रेणियों में बांटने की प्रक्रिया को अपनाया है: जैविक (खाद्य अपशिष्ट) और पुनर्चक्रण योग्य (प्लास्टिक, कागज आदि).
वह अपने घर के सभी कचरे को इन दोनों श्रेणियों में विभाजित करते हैं.घर में पैदा होने वाले खाद्य अवशेषों जैसे प्याज, आलू, केले और संतरे के छिलके, अंडे के छिलके आदि का उपयोग वे खाद बनाने के लिए करते हैं, जो बाद में उनके बगीचे के लिए फायदेमंद साबित होते हैं.
यह प्रयास कचरे के प्रबंधन को केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जीवन शैली बनाने की दिशा में बढ़ रहा है.उनका उद्देश्य यह है कि लोग घर से ही कचरे का सही तरीके से निपटान करें और पर्यावरण के लिए खतरनाक कचरे को नदियों या नालों में न फेंकें, ताकि नालियाँ और जल निकासी व्यवस्था जाम न हो और बरसात के मौसम में सफाई की स्थिति बनी रहे.
केसर की खेती: एक नया प्रयोग
फारूक की कचरे के प्रबंधन की दिशा में यह पहल अब उनके बगीचे में एक चमत्कारी परिणाम ला चुकी है.उन्होंने घरेलू कचरे से खाद बनाकर केसर की खेती की शुरुआत की है.यह पहल एक बड़ा कदम साबित हुआ है, क्योंकि केसर पारंपरिक रूप से कश्मीर के पुलवामा जिले के पंपोर और आसपास के इलाकों में उगाया जाता है, जहां विशेष जलवायु परिस्थितियाँ होती हैं.
इसके बावजूद, फारूक ने अपने बगीचे में इसे उगाकर साबित किया कि यदि जैविक कचरे का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो ऐसे विशेष जलवायु की आवश्यकता नहीं होती.फारूक को केसर उगाने का विचार तब आया जब एक मित्र ने उनसे पूछा कि क्या उनके गांव में केसर उगाया जाता है, तो उन्होंने उत्तर दिया "नहीं".
यह सवाल उन्हें चिंतित कर गया और उन्होंने तय किया कि वे खुद केसर उगाने की कोशिश करेंगे.इसके बाद, उन्हें पुलवामा के अवंतीपुरा के एक किसान से 60 केसर के दाने मिले, जिन्हें उन्होंने अपने बगीचे में बोने के लिए इस्तेमाल किया.उन्होंने इन दानों को अपने घर के कचरे और अन्य चीजों का उपयोग करके बोया और मात्र 19 दिनों में पहला केसर का फूल खिल गया.
अब तक उन्होंने 85 केसर के फूल काटे हैं, जो उनकी मेहनत का परिणाम हैं.फारूक का कहना है कि यह अनुभव यह साबित करता है कि जैविक कचरे को सही तरीके से प्रबंधित करके हम पारंपरिक जलवायु-विशिष्ट फसलों को भी उगा सकते हैं.यदि हम कचरे का सही तरीके से उपयोग कर सकते हैं, तो न केवल हमारे पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि यह हमें आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदा देगा.
अगला कदम: ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाना
अब फारूक का अगला लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे के सही प्रबंधन की दिशा में और अधिक बदलाव लाना है.उनका उद्देश्य है कि हर गांव में चार घरों को गोद लिया जाए और वहां के लोगों को स्रोत पर कचरे को अलग करने के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाए.वे चाहते हैं कि कचरे का प्रबंधन केवल एक व्यक्तिगत प्रयास न हो, बल्कि यह सामूहिक रूप से किया जाए ताकि पूरे समुदाय को लाभ मिल सके.
फारूक का मानना है कि शिक्षा और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से कचरे के प्रबंधन को एक आंदोलन में बदला जा सकता है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण स्वच्छ होगा, बल्कि यह समृद्धि की ओर भी मार्ग प्रशस्त करेगा.उनका सपना है कि जम्मू और कश्मीर, और विशेष रूप से कश्मीर घाटी, को एक स्वच्छ, हरा-भरा और समृद्ध स्थान बनाया जाए.
फारूक अहमद गनई की यह पहल यह साबित करती है कि कचरे का सही प्रबंधन केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है.उनका उदाहरण यह दिखाता है कि अगर हम अपने आसपास के कचरे को एक संसाधन के रूप में देखें और उसका सही तरीके से इस्तेमाल करें, तो न केवल हम अपने वातावरण को स्वच्छ रख सकते हैं, बल्कि इससे हमें आर्थिक लाभ भी मिल सकता है.
फारूक का यह प्रयास न केवल जम्मू और कश्मीर के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है, कि हम कैसे अपने कचरे को धन में बदल सकते हैं और एक स्वच्छ, हरा-भरा वातावरण बना सकते हैं.