दयाराम वशिष्ठ / सूरजकुंड (हरियाणा)
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की पीतल नगरी न केवल देश में बल्कि विदेशों तक अपनी शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है. पीतल पर नक्काशी का काम यहां के हस्तशिल्पियों की पहचान बन चुका है. मुरादाबाद के पीतल उत्पादों का कारोबार सात समंदर पार तक फैल चुका है और इसकी कड़ी में 82 वर्षीय हस्तशिल्पी मोबीन हुसैन का योगदान अहम रहा है.
अपनी नक्काशी कला से न केवल उन्होंने मुरादाबाद का नाम रोशन किया बल्कि शिल्प गुरु अवार्ड भी प्राप्त किया.
मोबीन हुसैन का नाम मुरादाबाद के हस्तशिल्प उद्योग में बहुत सम्मानित है. उन्होंने पीतल पर नक्काशी की कला को न केवल सीखा बल्कि इसे एक नई पहचान दी. उनके काम को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा 2010 में शिल्प गुरु अवार्ड से नवाजा गया था. इस पुरस्कार ने मोबीन हुसैन की कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई.
मोबीन हुसैन ने अपने पिता अलताब अहमद से नक्काशी के काम को सीखा और इसके बाद उन्होंने पीतल पर नक्काशी में महारत हासिल की. आज उनका बेटा नदीम भी इस कला को आगे बढ़ा रहा है, और उनके द्वारा की गई नक्काशी को बाजार में भारी मांग मिल रही है। इन आइटमों को शोरूमों के माध्यम से विदेशों तक भेजा जाता है.
मोबीन हुसैन ने न केवल अपनी कला को आत्मसात किया बल्कि कई युवा शिल्पियों को भी प्रशिक्षित किया. उनके कई शिष्य आज स्टेट और नेशनल अवॉर्ड प्राप्त कर चुके हैं. वे मानते हैं कि हस्तशिल्प का भविष्य युवा पीढ़ी के हाथों में है, और उन्हें अपनी कला से प्रेरित करने के लिए वह हमेशा तैयार रहते हैं.
नदीम, जो अब अपने पिता के व्यवसाय को संभाल रहे हैं, कहते हैं कि नक्काशी की कला में हर शख्स की दिलचस्पी नहीं होती क्योंकि इसमें समय और मेहनत ज्यादा लगती है, जबकि मजदूरी उतनी नहीं मिलती. फिर भी, उनका मानना है कि पीतल पर नक्काशी की कला की मांग बहुत बढ़ी है, खासकर शोरूम और विदेशों में.
पीतल पर नक्काशी के बाद उसे एक नई चमक मिल जाती है. मोबीन हुसैन और उनके बेटे नदीम इस कला को बेहद सटीकता से करते हैं. इस नक्काशी में नपे-तुले औजारों जैसे कलम, थापी, रंदा और रेती का इस्तेमाल किया जाता है. बड़े आकार के उत्पादों पर पहले नक्काशी की जाती है ताकि डिजाइन सीखने में आसानी हो, फिर धीरे-धीरे छोटे आइटमों पर काम किया जाता है.
नक्काशी किए गए पीतल के उत्पादों की खूबसूरती इतनी आकर्षक होती है कि जो भी उन्हें देखता है, वह हैरान रह जाता है. फूलदान, लोटा, कलश, बोतल आदि पर की गई नक्काशी न केवल सुंदरता में वृद्धि करती है बल्कि उत्पाद की कीमत भी बढ़ा देती है.
हालांकि पीतल पर नक्काशी का काम बहुत मशहूर है, लेकिन मोबीन हुसैन का कहना है कि अब युवाओं का इस काम से मोह भंग हो रहा है. दरअसल, नक्काशी में समय अधिक लगता है और मजदूरी कम मिलती है, जिससे युवा पीढ़ी अब इससे दूर हो रही है. हालांकि, उनके बेटे नदीम इस कला को बनाए रखने के लिए पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं.
मुरादाबाद में अब पीतल से बने उत्पादों की मांग सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़ रही है. विशेष रूप से शोरूमों के माध्यम से पीतल के आइटमों का निर्यात किया जा रहा है. राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए गए शिल्प गुरु मोबीन हुसैन का मानना है कि पीएम मोदी ने जर्मनी में हुए जी-7 सम्मेलन के दौरान पीतल नगरी की पहचान को और बढ़ावा दिया है.
उन्होंने जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज को पीतल से बना एक कलश भेंट किया था, जिसने मुरादाबाद के हस्तशिल्प को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान दिलाई.
पहले पीतल के उत्पादों की बिक्री जयपुर, आगरा, बनारस और दिल्ली के मेलों में होती थी, लेकिन अब सूरजकुंड जैसे मेलों में भी पीतल के आइटमों की बिक्री बहुत होती है. मोबीन हुसैन के बेटे नदीम के मुताबिक, अब उनकी कला की मांग लगातार बढ़ रही है और उनका व्यवसाय भी फैलता जा रहा है.
आजकल लोग अपने घरों की सजावट के लिए पीतल से बने डेकोरेशन आइटम्स को अधिक पसंद करने लगे हैं. पहले जहां लोगों के पास पैसा नहीं था, वहीं अब अच्छे घर और सजावट के लिए हर किसी की इच्छा होती है. इसके कारण मेलों में डेकोरेशन आइटम्स की बिक्री में भी वृद्धि हो रही है।
मोबीन हुसैन के बेटे नदीम का कहना है कि उनके कारखाने में 10 कारीगर काम कर रहे हैं. अपने पिता की देखरेख में और उनकी कला को आगे बढ़ाते हुए, नदीम ने अपने परिवार के पारंपरिक व्यवसाय को और मजबूत किया है.