मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने देशभर को झकझोर कर रख दिया है. इस हमले में मारे गए निर्दोष लोगों की विधवाओं, बच्चों और अन्य आश्रितों की मदद के लिए अब एक नया और ऐतिहासिक प्रस्ताव सामने आया है. यह सुझाव दिया है देश के जाने-माने आईएएस कोच और शिक्षाविद् समीर अहमद सिद्दीकी ने, जिनकी पहचान एक सामाजिक विचारक के तौर पर भी तेजी से उभर रही है.
समीर अहमद सिद्दीकी ने एक ऐसा विचार रखा है, जिसे यदि अमल में लाया गया, तो यह कश्मीर, भारतीय मुसलमानों और आतंकवाद विरोधी प्रयासों के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ सकता है.
दुनिया की सबसे बड़ी एंटी-टेरर फंडिंग का विचार
समीर अहमद सिद्दीकी का सुझाव है कि भारत के मुसलमान मिलकर दुनिया की सबसे बड़ी "एंटी-टेरर फंडिंग" की मुहिम शुरू करें. उनके अनुसार भारत में लगभग 20 करोड़ मुसलमान हैं.
अगर इनमें से महज 20 लाख मुसलमान भी 100-100 रुपए का योगदान दें, तो एक विशाल फंड तैयार किया जा सकता है। इस फंड का उपयोग पहलगाम हमले में मारे गए परिवारों को 'सात पुश्तों' तक आर्थिक सहायता देने के लिए किया जा सकता है.
उनका यह प्रस्ताव किसी संस्थान के निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद उन परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करना है जो आतंकवाद की हिंसा के शिकार बने हैं.
समीर इस प्रस्ताव की तुलना कोलकाता के वली रहमानी की पहल से करते हैं, जिन्होंने इसी तरह के छोटे-छोटे आर्थिक योगदानों के माध्यम से 12 करोड़ रुपये की लागत से एक अत्याधुनिक स्कूल स्थापित किया. वहां निर्धन और बेसहारा बच्चों को कान्वेंट स्तर की शिक्षा प्रदान की जा रही है.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से पहल की अपील
समीर अहमद सिद्दीकी का कहना है कि इस ऐतिहासिक पहल की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को करनी चाहिए. उन्होंने तर्क दिया कि कश्मीर लंबे समय से आतंकवाद और नकारात्मक छवियों से जुड़ा रहा है. अब समय है कि कश्मीर को एक सकारात्मक और ऐतिहासिक रिकॉर्ड से भी जोड़ा जाए.
उनका कहना है, "जहां बेगुनाहों को मजहब पूछकर मारा गया हो और कलमे को बेइज्जत करने की कोशिश की गई हो, वहां की अवाम के आह्वान पर दुनिया की सबसे बड़ी एंटी-टेरर फंडिंग बननी चाहिए. इससे न केवल कश्मीर का चेहरा बदलेगा, बल्कि मानवता के पक्ष में एक ताकतवर संदेश भी जाएगा."
सोशल मीडिया पर समर्थन की बयार
समीर अहमद सिद्दीकी ने इस प्रस्ताव को अपने यूट्यूब चैनल 'टीम समीर सिद्दीकी' पर पांच दिन पहले प्रस्तुत किया था. तब से यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. लोगों ने समीर की सोच को सराहा है और कई ने इसे ‘आंखें खोलने वाली पहल’ बताया है.
वीडियो के कमेंट सेक्शन में लिखा गया:
"सर, आपकी सोच को सलाम है। आपने जो बात रखी है वह आज के समय में बेहद जरूरी है."
"تعلیم سے دوری آج ہماری ناکامی ہے، آپ جیسے اسکالر ہی ہماری امید ہیں۔"
"سبحان اللہ! کیسی گہری سوچ کے ساتھ اتنا بڑا پیغام دیا ہے۔"
"کتنی گہرائی سے ایک بڑی بات کو سمجھایا ہے آپ نے۔"
"सबसे मजबूत जवाब है - एकता और शिक्षा."
इससे साफ है कि समाज के बड़े तबके ने इस पहल का समर्थन किया है और इसे आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस की है.
कौन हैं समीर अहमद सिद्दीकी?
समीर अहमद सिद्दीकी न केवल एक प्रतिष्ठित आईएएस कोच हैं, बल्कि एक सफल बिजनेस एनालिस्ट भी रह चुके हैं. सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा उद्योग में उनका लंबा अनुभव रहा है.. वह संचालन प्रबंधन, संचार, नेतृत्व और डेटा विश्लेषण में दक्ष हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक समीर, वर्तमान में नई दिल्ली स्थित एम पुरी आईएएस संस्थान में सामान्य अध्ययन के प्रमुख हैं. यह संस्थान देश के शीर्ष सिविल सेवा प्रशिक्षण संस्थानों में से एक है, जहां से आईएएस, आईपीएस और ग्रुप-ए सेवाओं में उच्चतम चयन दर हासिल की गई है.
उनकी लिखी किताबें, विशेषकर "आंतरिक सुरक्षा और द्विपक्षीय संबंधों" पर आधारित पुस्तक, प्रतियोगी छात्रों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं.समीर भविष्य की जरूरतों के अनुरूप शिक्षा में बदलाव की वकालत करते हैं, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स के युग में नई पीढ़ी को तैयार करने पर जोर दिया गया है. वह पारंपरिक और आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों को खूबसूरती से जोड़ने के लिए भी प्रसिद्ध हैं.
उनके व्याख्यान और विश्लेषणों को यूट्यूब और अन्य प्लेटफार्मों पर लाखों लोग देख और शेयर कर चुके हैं.समीर अहमद सिद्दीकी का यह प्रस्ताव महज एक आर्थिक सहायता योजना नहीं है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ एक सकारात्मक और शक्तिशाली जवाब हो सकता है.
यदि भारत के मुसलमान एकजुट होकर इस योजना को अपनाते हैं और कश्मीर की अवाम इसकी पहल करती है, तो न सिर्फ पीड़ित परिवारों को संबल मिलेगा, बल्कि पूरी दुनिया के सामने एक नया संदेश भी जाएगा — कि मानवता की एकता आतंक की नफरत से कहीं अधिक मजबूत है.
अब देखना यह है कि जम्मू-कश्मीर सरकार और समाज के अन्य वर्ग इस ऐतिहासिक पहल को हकीकत में बदलने के लिए किस तरह कदम उठाते हैं.