अब्दुल वसीम अंसारी / बालाघाट / भोपाल
"अगर इरादे मजबूत हों और सपनों पर यकीन हो, तो कोई मंज़िल दूर नहीं होती" – इस कहावत को सच कर दिखाया है मध्यप्रदेश के छोटे से जिले बालाघाट की मुस्लिम युवती फरखंदा कुरैशी ने, जिन्होंने यूपीएससी 2024 की सिविल सेवा परीक्षा में 67वीं रैंक हासिल कर पूरे इलाके में गर्व की लहर दौड़ा दी है.
बालाघाट की गलियों से निकलकर देश के सबसे प्रतिष्ठित पदों में शुमार भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) तक पहुंचने वाली फरखंदा का सफर प्रेरणा से भरा है. आठवीं कक्षा में जब उन्होंने अपने जिले के कलेक्टर बी. चंद्रशेखरन को लोकल चैनल पर काम करते देखा, तभी उनके दिल में IAS बनने की लौ जल उठी.
वे बताती हैं, “मैंने तभी सोच लिया था कि एक दिन मैं भी कलेक्टर बनूंगी और समाज के लिए काम करूंगी.” यह सपना सालों की मेहनत, असफल प्रयासों और पारिवारिक समर्थन के बाद आज हकीकत बन चुका है.
फरखंदा का यह चौथा प्रयास था. 2021 से उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की थी.तीन बार असफल रहने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. वे कहती हैं, “मेरे माता-पिता ने हर बार मुझे टूटने नहीं दिया, बल्कि मोटिवेट करते रहे कि एक दिन सफलता जरूर मिलेगी.. अगर उनका साथ न होता तो शायद मैं पहले या दूसरे अटेंप्ट में ही हार मान लेती.”
फरखंदा मानती हैं कि UPSC जैसी कठिन परीक्षा के लिए 18 घंटे पढ़ाई जरूरी नहीं, बल्कि कंसिस्टेंसी और रणनीति ज़रूरी है. “मैंने हर दिन 6 से 8 घंटे पढ़ाई की, लेकिन रोज़ पढ़ाई की। पुराने सालों के पेपर, स्टैंडर्ड बुक्स, करंट अफेयर्स और न्यूज़पेपर मेरी तैयारी का अहम हिस्सा रहे.”
सेंट मेरी स्कूल से 10वीं और मेथोडिस्ट मिशन से 12वीं करने वाली फरखंदा कहती हैं, “बालाघाट जैसे छोटे शहर से होना कभी मेरी कमजोरी नहीं बना. मैं मानती हूं कि यहां के युवाओं को सही दिशा और संसाधन मिले तो वे देशभर में नाम कमा सकते हैं.”
फरखंदा अपने पिता अब्दुल मलिक कुरैशी (जो पेशे से अधिवक्ता हैं) और मां निकहत अंजुम कुरैशी (गृहिणी) को अपनी सफलता का असली हीरो मानती हैं. उनके पिता भावुक होकर कहते हैं, “आज लोग मुझे मेरी बेटी के नाम से पहचानते हैं, इससे बड़ी खुशी मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकती.”
फरखंदा की इस उपलब्धि पर पूरे बालाघाट में जश्न का माहौल है। जिला कलेक्टर मृणाल मीणा ने उनसे मुलाकात कर व्यक्तिगत रूप से बधाई दी और उज्ज्वल भविष्य की कामना की. वहीं, स्थानीय अंजुमन कमेटी ने भी उनका इस्तकबाल करते हुए मुस्लिम समाज के लिए उन्हें एक प्रेरणास्रोत बताया.
फरखंदा की कहानी सिर्फ एक यूपीएससी रैंक की नहीं, बल्कि उस उम्मीद और जज़्बे की है जो समाज में बदलाव लाना चाहता है. एक मुस्लिम युवती का IAS बनना, सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि देश के सामाजिक तानेबाने में बदलाव की सकारात्मक मिसाल भी है.