आवाज द वाॅयस / नई दिल्ली
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार 2025 की घोषणा की. इस सूची में राजस्थान के नागौर जिले से ताल्लुक रखने वाली मुस्लिम भजन और मांड गायिका बतूल बेगम का नाम भी शामिल है. 68 वर्षीय बतूल बेगम को पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. उन्होंने अपने गायन के माध्यम से न केवल सांप्रदायिक सद्भावना को बढ़ावा दिया, बल्कि सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए देश-विदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाई.
आइए जानते हैं उनके प्रेरणादायक जीवन और संघर्ष की कहानी.
बतूल बेगम का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के केराप गांव में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ. वे मीरासी समुदाय से आती हैं, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ माना जाता है. परिवार की सीमित आर्थिक स्थिति के बावजूद उन्होंने बचपन में ही संगीत के प्रति गहरी रुचि दिखानी शुरू कर दी.
जब वह सिर्फ 8 साल की थीं, तब उन्होंने भजन गाना शुरू किया. एक मुस्लिम महिला होते हुए भी उन्होंने भगवान राम और गणपति के भजन गाकर न केवल धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश की, बल्कि रूढ़िवादिता को भी चुनौती दी. यही वजह है कि उन्हें "भजनों की बेगम" के नाम से जाना जाता है.
शिक्षा में सीमित, लेकिन कला में निपुण
बतूल बेगम ने केवल पांचवीं कक्षा तक शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद, 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. उनके पति फिरोज खान रोडवेज में कंडक्टर थे. शादी के बाद उन्होंने तीन बेटों को जन्म दिया और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच अपने गायन को जारी रखा.
उनकी गायकी न केवल मांड और भजनों तक सीमित रही, बल्कि उन्होंने ढोल, ढोलक और तबला जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों को भी कुशलता से बजाना सीखा. उनके समर्पण और कड़ी मेहनत ने उन्हें छोटे-छोटे समारोहों से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचा दिया.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
बतूल बेगम ने अपनी गायकी के जरिए न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में नाम कमाया. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ट्यूनीशिया, इटली, स्विट्जरलैंड, और जर्मनी जैसे देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया.उनका नाम ‘बॉलीवुड क्लेजमर’ नामक एक अंतरराष्ट्रीय फ्यूजन लोकसंगीत बैंड से भी जुड़ा है,
जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के कलाकारों को एक मंच पर लाकर सांस्कृतिक फ्यूजन प्रस्तुत करता है. इस बैंड के माध्यम से उन्होंने सांप्रदायिक सद्भावना और विविधता को बढ़ावा देने का कार्य किया.
सम्मान और पुरस्कार
बतूल बेगम को 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उन्हें कई विदेशी सरकारों और संस्थाओं द्वारा भी सम्मानित किया गया है.
उनकी कला को फ्रांस और ट्यूनीशिया की सरकारों ने भी मान्यता दी है. उनके मांड गायन और भजनों ने उन्हें एक ऐसी पहचान दी है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं को पार कर मानवता और सद्भाव का संदेश देती है.
सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान
बतूल बेगम न केवल एक बेहतरीन गायिका हैं, बल्कि वे आधुनिक विचारों की समर्थक भी हैं. वे बालिका शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की पुरजोर वकालत करती हैं. पिछले पांच दशकों से वह अपने गायन के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भावना और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा दे रही हैं.
उनकी कला ने यह साबित किया कि संगीत किसी धर्म या जाति की सीमाओं में नहीं बंधता. वे धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता का प्रतीक बन चुकी हैं.
प्रेरणा का स्रोत
बतूल बेगम का जीवन संघर्ष, समर्पण और सफलता की कहानी है. उन्होंने कठिनाइयों के बावजूद अपनी कला को जिंदा रखा और उसे एक ऐसे स्तर तक पहुंचाया, जहां वह समाज के लिए प्रेरणा बन सकें. पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होना उनके योगदान को एक राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करता है.
बतूल बेगम का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर जुनून और लगन हो, तो सामाजिक बाधाओं को पार कर कोई भी अपने सपनों को साकार कर सकता है. उनका योगदान न केवल संगीत के क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देने में भी अतुलनीय है.