आवाज द वाॅयस / मुंबई
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) 2024 के परिणामों ने कई नए सितारे उगाए हैं, लेकिन उनमें से एक नाम पूरे महाराष्ट्र और मुस्लिम समुदाय के लिए गर्व का विषय बन गया है — अदीबा अनम अशफाक अहमद. एक साधारण रिक्शा चालक की बेटी अदीबा ने 142वीं रैंक हासिल कर इतिहास रच दिया. वे महाराष्ट्र से पहली मुस्लिम महिला बनने जा रही हैं, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का हिस्सा होंगी.
अदीबा का जन्म और पालन-पोषण महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल यवतमाल जिले में हुआ. उनके पिता अशफाक अहमद पेशे से ऑटो-रिक्शा चालक हैं. दिलचस्प बात यह है कि वह रिक्शा भी उनका अपना नहीं है, बल्कि किराए पर चलाते हैं. परिवार एक किराए के छोटे से मकान में रहता है. आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए अदीबा ने अपने सपनों को आकार दिया.
शिक्षा का सफर: छोटे गांव से राष्ट्रीय स्तर तक
-प्रारंभिक शिक्षा: अदीबा ने अपनी पढ़ाई जफरनगर के जिला परिषद उर्दू प्राथमिक विद्यालय से शुरू की, जहाँ उन्होंने कक्षा 1 से 7 तक पढ़ाई की.
-माध्यमिक शिक्षा: इसके बाद उन्होंने जिला परिषद पूर्व-सरकारी बालिका उच्च विद्यालय, यवतमाल से कक्षा 8 से 10वीं तक शिक्षा प्राप्त की.
-उच्च माध्यमिक शिक्षा: 11वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई भी उन्होंने जिला परिषद पूर्व-सरकारी कॉलेज, यवतमाल से पूरी की.
-स्नातक शिक्षा: गणित में गहरी रुचि के चलते अदीबा ने पुणे के इनामदार सीनियर कॉलेज से बीएससी (गणित) की डिग्री हासिल की.
यूपीएससी की कठिन राह
यवतमाल जैसे छोटे जिले में सीमित संसाधनों के बीच अदीबा ने अपने सपनों को आकार दिया. चूंकि वहां उच्च स्तरीय कोचिंग सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन्होंने पुणे में जाकर यूपीएससी फाउंडेशन कोर्स ज्वाइन किया. हालांकि आर्थिक समस्याएं उनके रास्ते में बार-बार आईं, फिर भी अदीबा ने हार नहीं मानी..
अदीबा ने पहले तीन प्रयासों में असफलता का सामना किया. लेकिन न तो उन्होंने हिम्मत हारी और न ही अपने लक्ष्य से भटकीं. अपने चौथे प्रयास में उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में 142वीं रैंक हासिल कर ली. यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और अथक मेहनत का परिणाम है.
डॉक्टर बनने का सपना, आईएएस बनने का निर्णय
बातचीत में अदीबा ने कहा:"मेरा सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण मैं वह सपना पूरा नहीं कर सकी. इस वजह से काफी निराश हो गई थी."
ऐसे कठिन समय में यवतमाल स्थित सेवा एनजीओ के सचिव निजामुद्दीन शेख ने उन्हें प्रेरित किया. उन्होंने अदीबा को समझाया कि एक आईएएस अधिकारी बनकर भी समाज और देश की सेवा की जा सकती है.
यही वह मोड़ था जब अदीबा ने ठान लिया कि वह यूपीएससी परीक्षा देंगी. उन्होंने लगातार प्रयास किया और आखिरकार अपने परिवार और जिले का नाम रोशन किया.
परिवार की खुशी का पल
जब अदीबा के माता-पिता को उनकी सफलता की खबर मिली, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए.उनकी मां ने कहा:"हमने हमेशा चाहा था कि हमारी बेटी कुछ बड़ा करे. आज उसका सपना भी पूरा हुआ और हमारा भी."उनके पिता अशफाक अहमद ने गर्व से कहा:"मेरी बेटी ने यह साबित कर दिया कि गरीबी कोई बाधा नहीं है, अगर संकल्प मजबूत हो तो."
समुदाय में खुशी की लहर
अदीबा की उपलब्धि को मुस्लिम समुदाय ने ऐतिहासिक पल बताया. कई सामाजिक संगठनों ने उन्हें बधाई दी.. कहा कि उनकी सफलता अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बनेगी. यवतमाल जिले में भी जश्न का माहौल है. स्थानीय लोगों ने इसे पूरे जिले के लिए गौरव का क्षण बताया है.
अदीबा अनम अशफाक अहमद की कहानी उस भारत की तस्वीर पेश करती है, जहां सीमित साधनों और कठिनाइयों के बावजूद प्रतिभा और मेहनत के बल पर कोई भी ऊंचाइयों को छू सकता है. वह आज हजारों युवाओं, खासकर मुस्लिम लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं.
उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर हौसले बुलंद हों और मंजिल को पाने की सच्ची लगन हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है.