-अभिषेक कुमार सिंह/ पटना /वाराणसी
अररिया के संदलपुर गांव में एक एकड़ के तालाब में मोहम्मद तपज़ुल मछली निकालने की तैयारी में हैं. उन्होंने हाल ही में रूपचंदा और पंगेसियस किस्म की मछलियों का पालन शुरू किया है. उन्हें उम्मीद है कि रूपचंदा और पंगेसियस मछलियों का पालन से उनकी आमदनी और अधिक बढ़ेगी.
मैट्रिक तक पढ़े 39साल के मोहम्मद तफाजुल की मौजूदा आमदनी करीबन 9लाख सालाना तक है, और यह आमदनी उनके लिए एक सपने के हकीकत में बदल जाने जैसा ही है.मोहम्मद तफाजुल हौसलों की उड़ान वाली कहावत के सच होते जाने की सच्ची मिसाल हैं.
बिहार के सीमांचल इलाके के अररिया जिले के पिछड़ी पंचायत गैरा के गांव संदलपुर के मोहम्मद तफाजुल कभी दिहाड़ी मज़दूर का काम करते थे. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.जिस खेती के काम के बारे में आम धारणा है कि इसमें मुनाफा कमाना मुश्किल है, उसमें मोहम्मद तफाजुल ने अपनी कामयाबी की इबारत लिखी है.
आज से कोई ढाई दशक पहले, 1997में वह गाजियाबाद में एक ईंट भट्टे पर काम करते थे. इसके बाद वह खेतिहर मजदूर के रूप में काम करने के लिए मेरठ चले गए. मोहम्मद तफाजुल ने मेरठ में जो मजदूरी की, वह सब्जी के खेत में काम करने की थी और यह उनके लिए भविष्य की सीढ़ी साबित हुआ.
सब्जी की खेती में काम करते हुए उन्होंने सब्जी की खेती की बारीकियां सीख लीं. मेरठ में कुछ समय रहने के बाद मोहम्मद तफाजुल 2001में पैतृक गांव लौट आए. गांव लौटकर उन्होंने उसी साल सब्जियों की खेती शुरू कर दी. खेती लायक जमीन उनके पास नहीं थी ऐसे में उन्होंने 10कट्ठा जमीन लीज पर ले ली और उसमें बैंगन की खेती शुरू की.
पहले ही साल, खेती के अपने ज्ञान के दम पर तफज़ुल ने 36हजार रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया. अब मोहम्मद तफाजुल ने पट्टे पर और अधिक खेत ले लिए और सब्जी की खेती का विस्तार किया.
उन्होंने अन्य सब्जियों के अलावा फूलगोभी, नींबू, केला, टमाटर और मिर्च की खेती शुरू की. हालांकि सब्जी की खेती से तफज़ुल की आर्थिक स्थिति तो सुधर गई लेकिन मछली पालन ने उनकी किस्मत बदल कर रख दी.
इस मामले में कृषि विकास केंद्र, अररिया ने सब्जी और मछली पालन दोनों में उनकी काफी मदद की. केवीके द्वारा प्रदान की गई वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता ने तफज़ुल को सब्जी और मछली पालन को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने में मदद की.
असल में, कृषि विज्ञान केंद्र कृषि अनुसंधान और किसानों के बीच एक सेतु का काम करती है, जो बेहतर खेती के तरीकों के लिए ज्ञान और तकनीक को किसानों तक पहुंचाता है.तफजुल ने केवीके द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर उन्होंने शिमला मिर्च, ब्रोकली, खीरा, तरबूज जैसी बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन शुरू किया.
तफजुल ने केवीके द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर चीतल किस्म की मछली पालन की तकनीक भी सीखी. कृषि विज्ञान केंद्र, अररिया संस्थान के सहयोग की वजह से ही वह सब्जी की खेती से आगे बढ़ाकर विविधता ला पाए.
तफजुल ने अपनी आय बढ़ाने के लिए सब्जी की खेती के साथ-साथ मछली पालन भी शुरू किया. मछली पालन शुरू करने के लिए उसने एक पोखरा पट्टे पर ले लिया. असल में वह पोखरा भी नहीं था. वह सड़क निर्माण के लिए मिट्टी की आवश्यकता पूरा करने के लिए मिट्टी खोदने से बना सड़क किनारे का गड्ढा था.
पहली बार में तफज़ुल ने मांगुर मछली के 400दानों से मछली पालन को शुरू किया. पहली बार में उनके छोटे पोखरे से दो क्विंटल मछली का उत्पादन हुआ.
तफज़ुल की पहली उपज को 10,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकी. यह मुनाफा उत्साहजनक था. इसके बाद उन्होंने मागुर मछली की खेती से होने वाले बड़े मुनाफे को ध्यान में रखते हुए चीतल, कतला, रोहू, कॉमन कार्प और ग्रास कार्प की खेती की शुरुआत की. करीब दो साल पहले तफ़ज़ुल ने एक एकड़ ज़मीन पर चीतल मछली का पालन शुरू किया था.
वह कहते हैं, “मछली के बीज के भंडारण के लिए 5000 रुपए खर्च करने पड़े और चीतल किस्म की मछली पालन में कुल 32000 रुपए खर्च हुए.”तफाजुल के मुताबिक, पहली बार जब उन्होंने चीतल मछली की खेती शुरू की, तो उनका मुनाफा लगभग 1.25 लाख रुपये था.
आज की तारीख में तफाज़ुल की वार्षिक शुद्ध आय 8 लाख रुपये से 9 लाख रुपये के बीच है, जिसमें सब्जी और मछली पालन से उनकी कमाई शामिल है.वह बताते हैं कि अब उनके पोखरों का कुल क्षेत्रफल बढ़कर पाँच एकड़ हो गया है और उन्होंने खेती के लिए अधिक भूमि पट्टे पर ले ली है.
उन्होंने अधिक किस्म की मछलियाँ पालना शुरू कर दिया है और मछली पालन से उनकी आय में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है.मोहम्मद तफाजुल की जिंदगी शायद ईंट भट्ठे या किसी खेत पर बतौर मजूदर पसीना बहाते ही गुजर जाती अगर उन्होंने सपना नहीं देखा होता और उस सपने को साकार करने के लिए तकनीकी मदद लेकर नए रास्ते नहीं खोले होते.मोहम्मद तफाजुल अपने पोखरों में मछली की शक्ल में चांदी उगा रहे हैं.