जुर्माना नहीं शुकराना है फितरा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 11-04-2022
जुर्माना नहीं शुकराना है फितरा
जुर्माना नहीं शुकराना है फितरा

 

शगुफ्ता नेमत

दुनिया में दो तरह के लोग हैं अमीर और गरीब. मगर किसी एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता. इसलिए अल्लाह ने मुसलमानों पर रमजान में जकात और फितरा फर्ज किया है, ताकि दोनों त्योहार का आनंद उठा सकें. फितरा न देने वाले का रोजा स्वीकार नहीं किया जाता. दूसरी तरफ उसी फितरे के पैसे से गरीब के घरों में ईद पर खुशियां मनाई जाती हैं.

फितरा देने के मुख्य दो उद्देश्य हैं. पहला, रोजा रखने के दौरान जो बुराइयां जाने-अनजाने में होती हैं फितरा देने से माफ कर दी जाती हैं. दूसरा, समाज को गति प्रदान करने के लिए एक दूसरे का ध्यान रखना. दीन-दुखियों का हमारी संपत्ति पर भी अधिकार है. इस्लाम में इस पर खास जोर दिया गया है.

फितरा हर उस व्यक्ति को देना होता है, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी मूल्य के बराबर पैसे हो. अभी के हिसाब से 55-60 हजार रुपये बनते हैं. जिनके पास इतनी रकम नहीं हैं, उनके लिए फितरा देना आवश्यक नहीं.

zakat

फितरा देने का आदेश किसे

-जिसकी आमदनी उसकी आवश्यकता से कम हो.

-जिसके पास दो समय पेट भरने के लिए पैसे न हों.

-यात्री जिनके पास घर में तो सब कुछ है, पर यात्रा के दौरान उसके पैसे, सामान सब चोरी हो गए हों.

-अल्लाह के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए निकले राहगीर.

-कुरान में सूरह तौबा (आयत नंबर 129) में फितरा देने का आदेश है.

फितरा की एक निश्चित राशि तय की गई है, जो पौने दो किलो गेहूं का दाम है या तीन किलो (खजूर, किशमिश या चावल) के मूल्य के बराबर है. हर व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार इनमें से किसी एक का चुनाव कर सकता है. फितरा घर के सभी सदस्यों का निकाला जाना चाहिए. यहां तक कि नवजात का  भी.

प्रत्येक व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार फितरा दे सकता है. अधिक सामर्थ्य वाला व्यक्ति तीन किलो किशमिश, खजूर या चावल का मूल्य देने का हकदार है. उससे कम सामर्थ्य वाला पौने दो किलो गेहूं या उसकी राशि फितरे के तौर पर बांट सकता है. इसके साथ यह आवश्यक है कि जैसा अनाज हम स्वयं खाते हैं, वैसा ही फितरा में बांटना जाए. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फितरे के लिए किशमिश और खजूर में चुनाव किया करते थे.

फितरा को ईद के त्योहार से कुछ दिन पहले जरूरतमंदों तक पहुँचा देना चाहिए, ताकि वे भी ईद की खरीदारी और तैयारी कर सकें. इसे बहुत ही सम्मानपूर्वक अदा करने का आदेश है. एहसान जताकर फितरा देने को मना किया गया है. यह अमीरों के लिए जुर्माना नहीं शुकराना है, ताकि वह अपने रब का धन्यवाद कर सके कि कोई तो है, उनके फितरा को स्वीकारने वाला.

fitra

ए खुदा क्या खूब है तेरी खुदावंदी  

जकात फितरा को फर्ज बनाया

खुशियां मिलकर मनाना समझाया

अमीरों को माल देकर आजमाया

गरीबों को संयम करना सिखाया

तेरी जाते कुदरत से मगर

महरूम कोई भी न रह पाया.

रमजान, फितरा और ईद का आपस में गहरा संबंध है. इसलिए ईद को ‘ईद उल फित्र‘ भी कहा जाता है.

(लेखिका पेशे से टीचर हैं.)